रविवार, 11 अक्टूबर 2020

विष भरा अमृत ( कहानी )

                                                          विष भरा अमृत    ( कहानी )  --- आलोक सिन्हा   

.       पापा ने मेरा नाम अनुपमा रखा था | शायद मेरी मुखाकृति देख कर प्रसन्न हो उठे होंगे | सोचा होगा कि उनकी छोटी सी प्यारी सी अनु बड़ी होकर सारे समाज को मोह लेगी  | वो जिससे भी कहेंगे वह उसे खुशी खुशी विवाह करके अपने घर ले जायेगा और उनकी अनु फूलों की सेज पर बैठी एक रानी की तरह सारे घर पर राज करेगी | लेकिन किसी को घुट घुट कर मर जाने के लिए बाध्य कर देने वाली लडकी क्या कभी अनुपमा हो सकती है | मैंने जान बूझ कर एक व्यक्ति की जिन्दगी खराब कर दी | मैं चाहती तो क्या नहीं कर सकती थी | काश ! पापा ने मेरे बाह्य सौन्दर्य के साथ मेरे मन के भीतर की सच्चाई भी देखी होती |                                                             बात वर्षों पुरानी  है | मैं तब शायद बी. ए कर रही थी  | हाँ , बी. ए. फाइनल में ही थी | आयु १७ -१८  के आस  पास रही होगी | पापा बैंक मेनेजर थे और उनका तभी तभी  अलीगढ़ से अमरोहा स्थानान्तरण हुआ था | वहां किसी भी कॉलिज में शिक्षा शास्त्र व   मनोविज्ञान विषय न होने के कारण मैं नियमित छात्रा के रूप में कहीं प्रवेश नहीं ले सकी थी और मुझे अपना  बी. ए. के दूसरे वर्ष का व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में फार्म भरना पड़ा था |

 एक दिन अचानक कुछ ही दूरी पर स्थित मकान मालिक श्री शंकर सरन के घर पापा की मिहिर से भेंट हो गई | वह उनके कॉलिज में पिछले वर्ष ही प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति पाकर फिरोजाबाद से अमरोहा आये थे  और उनकी बेटी को इंगलिश एम.ए. उत्तरार्द्ध की तैयारी करा रहे थे | पापा ने जाने क्यों उनसे मेरा भी जिक्र कर दिया | बोले -`` अगर बेटा तुम कुछ दिन अनु को भी जनरल इंगलिश में कुछ गाइड कर दो तो मेरी बहुत बड़ी समस्या हल हो जाए |                             ``मिहिर बहुत संकोच शील थे | घरेलू परिस्थितियाँ सामान्य न होने पर भी पापा से कुछ मना नहीं कर सके | तुरंत स्वीकृति देते हुए बोले -`` जी मैं हेल्प कर दूंगा | घर तो पास ही है | मुझे कोई परेशानी नहीं होगी |                                            प्रारम्भ में तो मैंने उनसे पढने कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई | अम्मा हर पल एक पहरेदार की तरह कमरे की देहरी पर बैठी कभी स्वेटर बुनती रहती , कभी जवे तोडती रहतीं और मिहिर मुझे धारा प्रवाह बोलते हुए सामान्य इंगलिश के नियम समझाते रहते | मैं न तो उनसे कुछ पूछ पाती थी , न ठीक से उनके किसी प्रश्न का उत्तर दे पाती थी | कुछ दिन पढ़ाने के बाद अचानक मिहिर ने घर आना बंद कर दिया | मुझे बड़ा अजीब सा लगा | परीक्षाओं के केवल तीन महीने रह गये थे और मेरी किसी भी विषय की कोई तैयारी नहीं हुई थी | मेरा सारा साहस टूट गया | एक दिन तो मैं इतनी परेशान हो गई कि आँखों में आंसू भर आये |                                                   अम्मा मुझे बहुत प्यार करती थीं | उनके सात बच्चों में केवल में ही अकेली जीवित बची थी | जब उन्होंने मुझे परेशान देखा तो मुझसे तुरंत बोली -`` लडका तो बहुत सज्जन व सीधा है | कोई अवश्य ख़ास बात होगी जो नही आ पा रहा है | आज शाम शिल्पा के घर चलेंगे | उसकी माँ तो दो बार हमारे घर आ चुकी हैं | पर मैं एक बार भी उनके घर नहीं जा पाई हूँ | तेरे उनके घर रोज खेलने जाने की बात और है | पर हम बड़ों को भी तो पडौसी होने के नाते आपस में मिलते जुलते रहना चाहिए | उनसे मिहिर के न आने का कारण भी पता चल जायेगा |                                                                मैं पता नहीं उस समय न जाने किस मूड में थी कि कुछ नहीं बोली | आज सोचती हूँ कि अगर जाने के लिए मना कर देती तो शायद एक बहुत बड़े पाप से बच जाती | न मुझे मिहिर की सौतेली माँ के कुटिल वयवहार के बारे में पता चलता , न मेरे मन में उनके प्रति झुकाव उत्पन्न होता |                                                                      शिल्पा दीदी शंकर सरन जी की बड़ी बेटी थीं | उनकी शंकर सरन साहब के एक अत्यंत घनिष्ट मित्र के बेटे से शादी तय हो चुकी थी | उनकी एक  छोटी बहन अनीता तब कक्षा १२  की पढ़ाई कर रही थीं और दूसरी कक्षा आठ की || इस समय शिल्पा दी का एक देवर इन्दु भी सरन साहब के कॉलिज का मेनेजर होने के कारण सब सुख सुविधाएँ पाने के लालच में गत दो वर्ष  से उनके ही घर पर रह कर बी. काम. की  पढ़ाई कर रहा था |                                                       जब अगले दिन मैं और अम्मा उनके घर पहुंचे तो  अम्मा तो आंगन में उनकी माँ के पास ही रुक गईं और मैं उनके कमरे में चली गई | उस समय उनके पास अनीता व इन्दु भी बैठे हए थे | सभी गंगा मेले में जाने के लिए सामान की सूची तैयार कर रहे थे | सब अपने काम में इतने तल्लीन थे कि बहुत देर तक किसी का मेरी तरफ ध्यान ही नहीं गया | पर जब दीदी ने मुझे देखा तो वह एक साथ खडी हो गई और मुझे अपनी कुर्सी पर बिठलाते हुए बोली -`` हम हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान के लिए तिगरी जाते है ना , तो उसी के लिए सामान की सूची तैयार कर रहे थे | इस बार तुम भी हमारे साथ चलो ना | सच वहां तम्बू डेरों में रह कर खेलने कूदने में बड़ा मजा आता है | पांच  छ: दिन गंगा में नहाते , मेले में खेल तमाशे देखते कैसे कब बीत जाते हैं , कुछ पता ही नहीं चलता |`                                                        मैं  कुछ कहना ही चाह रही थी कि तभी इन्दु बोल पड़ा -`` सच दीदी आप भी चलिए | आपकी हर सुख सुविधा का ध्यान रखने का दायित्व मेरा रहा | मैं आपको वहां कोई परेशानी नहीं होने दूंगा | सच दीदी आपके चलने से हमारी बहुत बड़ी समस्या हल हो जायेगी | क्योंकि वहां बच्चों में बस हम तीन ही तो होते हैं | मैं भाभी और  अनीता | जिससे ताश ,कैरम , चौपड़ , बैड मिन्टन - सभी खेलों में हमें चौथे खिलाड़ी को खोजना पड़ता है | देखिये आपने अब भी जब से शाम को ट्यूशन पढना शुरू किया है , हम सबका खेलना बंद सा ही हो गया है | भाभी है , उन्हें कभी भी कोई काम के बहाने बुला लेता है | फिर बस में और अनीता रह जाते हैं | दो जने कैसे कोई खेल खेलें | जब आप आ जाती थीं तो भाभी भी आपके कारण ताश कैरम खेलने बैठ ही जाती थीं | सच दीदी मना मत कीजिये , प्लीज |``                                      मैंने कहा -`` मैं अम्मा से पूछ कर बताती हूँ |``                                           `` पहले तुम अपनी बात बताओ `` शिल्पा दी ने मेरा मन टटोलने के विचार से पूछा -`` कि तुम्हारी हाँ है कि ना | आंटी की स्वीकृति की बात तो तुम मुझ पर छोड़ दो |``                                 मैनें कहा -`` अम्मा कह देंगी तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है | आप सबके साथ मुझे भी मेला देखने का अवसर मिल जायेगा |``                                     इसके बाद जब मैं लौट कर आंगन में अम्मा के पास आई तो उन्होंने आंटी से मिहिर के बारे में पूछा | पर वह मिहिर का प्रसंग आते ही कुछ चिन्तित सी हो गई | थोड़ी देर चुप रहने के बाद बड़े धीरे से बोलीं -`` बहिन ! मिहिर तो हमारे घर एक परिवार के सदस्य की तरह आता जाता है | न उसके लिए कोई समय का बन्धन है , न किसी विशेष जगह पढ़ाने का | बस जब भी उसे समय मिलता है चुप चाप आकर बच्चों को पढ़ा कर चला जाता है | पर उसकी सौतेली माँ के बारे में आपको क्या बताऊँ | पता नहीं किस दिमाग की महिला है | अभी एक दो दिन पहले उसे यहाँ पढाते पढाते रात को कुछ देर हो गई थी तो उसकी माँ ने उसके बहुत सफाई देने पर भी उसके लिए दरवाजा नहीं खोला और कई घंटे वह घर से बाहर ऐसे ही घूमता रहा | आज कल वह शायद किसी बात को लेकर कुछ जयादा ही परेशान लगता है | वैसे वह जिस दिन भी शिल्पा को पढ़ाने आएगा मैं आपकी चिन्ता उसे बता दूंगी |``                                                        सौतेली माँ की मैंने बचपन में अनेक कहानियां सुनी थी | पर आज भी मिहिर जैसे सरल और पढ़े लिखे व्यक्ति के साथ किसी माँ का ऐसा व्यवहार हो सकता है , यह मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी | मिहिर की वास्तविक स्थिति जान कर मेरा मन एक विचित्र से स्नेह से भीग गया | उस दिन मैंने पहली बार अनुभव किया कि मनुष्य उपेक्षित व तनाव भरे जीवन में कितना टूट जाता है |                                                             दो दिन बाद जब मिहिर मुझे पढ़ाने आये और मैंने उन्हें अपने मेले जाने के बारे में उन्हें बताया तो वह एक साथ कुछ गम्भीर से हो गये और बोले -`` तुम अपनी अम्मा पापा के बिना अकेली मेला देखने जाओगी | पांच छ: दिन एक डेरे में इन्दु अनीता शिल्पा के साथ जमीन पर साथ साथ सोओगी | तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना | तुम्हें हाँ करते जरा सा डर नहीं लगा | तुम अब तीन चार साल की कोई बच्ची तो हो नहीं कि कोई भी तुम्हें उंगली पकड़ कर मेले में गुब्बारे डुग डुगी पीपनी खरीदवाने के लिए अपने साथ ले जाए | तुम उनके घर में किसे कितना जानती हो और तुमने एक पल में जाने के लिए हाँ कर दी | सच कह रहा हूँ | मैं बहुत कोशिश करने पर भी अनीता को तो गलत राह पर जाने से नहीं बचा सका क्योंकि तब मैं यहाँ नया नया आया था और वह मेनेजर साहब के परिवार के दो सदस्यों से सम्बन्धित मामला था | पर तुम्हें मैं  किसी भी कीमत पर अनीता नहीं बनने दूंगा | इसके लिए मुझे चाहे कुछ भी क्यों न करना पड़े | समझ गई |``                                                                                     मिहिर की बात सुन कर मुझे एक साथ जोर से रोना आ गया | मैंने बड़ी मुश्किल से सिसकते हुए उनसे बस इतना ही कहा -`` गलती हो गई | मैं अब उनके साथ मेले में बिलकुल नहीं जाऊंगी |                                                                       पर शायद वह मेरे उत्तर से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुए और एक साथ मुझे बिना पढाये ही उठ कर अपने घर चले गये |                                                              इसके दो दिन बाद  जब वह मुझे पढ़ाने आये तो मैं बिलकुल अस्वाभाविक नहीं हुई और उन्हें द्वार पर देखते ही कुछ अपनी चिता दर्शाते हुए बोली -`` आप दो दिन से क्यों नहीं आये ?``                                   मिहिर ने मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया और चुप चाप पढने के कमरे में आकर कुर्सी पर बैठ गये | मैं भी फिर उनके  पास मेज से सट  कर खडी हो गई | मिहिर ने फिर मेरी ओर देख कर मेज से एक पुस्तक उठाते हुए कहा -`` बैठो , क्या पढना नहीं है ?``                                        

    `` अभी नहीं , पहले चाय | “                                                       `` अब चाय का कौन सा समय है ?``                                                                `` यह बात मुझसे नहीं , अम्मा से पूछिए |``                                                  `` सच , इस समय बिलकुल मन नहीं है |``                                          अब मैंने मिहिर के बिलकुल पास जाकर धीरे से उनकी पुस्तक बन्द कर दी और हाथ पकड़ कर उन्हें खीचते हुए कहा -`` चलिए ना , बस थोड़ी सी ले लीजिये |``                                               मिहिर अब कुछ नहीं बोले और हंसते हुए डाइनिंग टेबल पर आ गये | मुझे उस समय ऐसा लगा जैसे उन्हें मेरा बच्चों की तरह हाथ पकड़ना , चाय के लिए जिद करना बहुत अच्छा लगा है | वह बहुत देर तक मुझे अपलक देखते रहे | फिर कुछ मुस्कुराते हुए बोले -`` तुम्हें खिलाने पिलाने की कला बहुत अच्छी आती है | इस तरह मजबूर कर देती हो कि चाहे कितना भी मन न हो वह उसके लिए हाँ कर दे | ``                                                                      उनकी बात सुन कर मुझे कुछ हंसी सी आ गई | बोली -`` आप भी तो फिर व्यर्थ का संकोच कर रहे थे | `` वे तुरंत बोले -`` हाँ , ये तो है | पर इतनी खातिर भी मत करो कि फिर मैं चाय के लालच में रोज इसी समय तुम्हें पढ़ाने आने लगूं |``                                                                      इसके बाद मिहिर मुझे नियमित रूप से रोज पढ़ाने आने लगे | कुछ ही दिन में उनके सरल व् निश्छल स्वभाव ने घर में सबका मन मोह लिया | अम्मा तो उन पर इतनी मुग्ध हो गई कि फिर उन्हें मेरी कुछ चिंता ही नहीं रही | बस जैसे ही वह मुझे पढ़ाने घर आते , वह तुरन्त नीचे वाले वकील साहब के घर गपशप करने चली जातीं |                                                        एक दिन मिहिर को आने में कुछ दे हो गई | मुझे लगा कि वह शायद किसी आवश्यक काम में फंस गये है और पढ़ाने नहीं आ पायेंगे | तो मैं कुछ निश्चिन्त सी होकर अपनी एक सहेली को पत्र लिखने बैठ गई | पर अभी बस इतना ही लिखा था -`` प्रिय रीता , छोटी सी .....| मीठी मीठी यादों के मीठे मीठे पल |`` तभी मिहिर कमरे में आ गये और मेरे पत्र पर एक उचटती सी दृष्टि डालते हुए बोले -`` बस छोटी सी | शायद बहुत पक्की सहेली नहीं है |``                                                                                                   मिहिर को पीछे खड़ा देख कर मैं एक एक साथ चोंक पड़ी |  मैंने पत्र तुरंत अपनी पुस्तक में रख दिया और अपने आश्चर्य को छिपाते हुए बोली -`` आपको कैसे पता वह मेरी पक्की सहेली नहीं है | अगर मेरे पत्र लिखने में जरा सी देर हो जाए तो रोज दरवाजे पर खड़े होकर पोस्टमैन का इन्जार करती है | मुझसे बात किये बिना तो वह इतना दूर होने पर भी दो दिन  नहीं रह सकती |``                                                        `` " तब तो तुम बहुत कंजूस हो |``                                                  मिहिर ने मेज से ग्रामर की पुस्तक उठाते हुए कहा -`` जब तुम पत्र में भी दिल खोल कर अपना प्यार नहीं जता सकतीं तो सामने होने पर क्या करती होगी |``                                                                         मैं इस पर कुछ लजा सी गई | मुझे तुरंत उनकी बात का कोई उत्तर नहीं सूझा | इसलिए बात टालने  के विचार से बोली -``  खैर मेरे मन में उसके लिए कितना प्यार हैं , वह में ही जानती हूँ | बाहरी दिखावा कोई वास्तविकता थोड़े ही  होता है |``                                                                         इस पर मिहिर ने बड़े प्यार से मेरे सर पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा -`` बस अब यह प्रसंग खत्म और पढ़ाई शुरू | अब मैं तुम्हारी  अच्छी सहेली के बारे में कुछ नहीं कहूँगा | अब तो खुश |``                                                                       मिहिर मेरा गृह कार्य देख रहे थे और मैं मन्त्र मुग्ध सी चुप चाप बैठी थी | मिहिर के हल्के से चपत ने मेरे तन को ही नहीं , मन को भी बुरी तरह पुलकित कर दिया था | मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मिहिर ने मुझे ह्रदय से माफ कर दिया है | मेले जाने वाली बात को लेकर अब उनके मन में कोई गुस्सा नहीं है | शायद यह किसी सीमा तक सच भी था | क्योंकि इसके बाद वह दिन पर दिन मुझसे अधिक खुलते चले गये | कभी तो मेरी कोई बड़ी गलती देख कर गुस्से में मेरे गाल पर भी हल्की सी चपत लगा देते थे | पर मैं कभी उनसे कुछ नहीं कहती थी | जाने क्यों मुझे उनका प्रत्येक स्पर्श अच्छा लगता था | किसी किसी दिन तो मैं जानबूझ कर गलत उत्तर देकर उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर के देती थी |                                                इसी बीच एक दिन अम्मा अचानक बीमार पड़ गई | घर का सारा काम मेरे ऊपर आ गया | मिहिर यद्यपि अम्मा को देखने रोज सुबह शाम आते थे | फिर भी उनसे कुछ अधिक बातें नहीं हो पाती थी | एक दिन बारिश हो जाने के कारण अम्मा की तबियत अधिक खराब हो गई | पापा बाहर गये हुए थे | इसलिए मैंने कुछ देर के लिए मिहिर को रोक लिया | रसोई का काम समाप्त कर के जब मैं अम्मा के पास आई  और पानी का गिलास लेकर उन्हें दवा खिलने लगी कि एक साथ अचानक  तेज गड़गड़ाहट के साथ जमीन हिलने लगी | अम्मा जोर से चिल्लाई - भू-कम्प | डर के कारण मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया | मिहिर मेरे पास खड़े थे | मैंने उन्हें जोरों से बाँहों में जकड़ लिया | भूकम्प हल्का व कम समय का था | अम्मा मेरा सफेद चेहरा देख कर धीरे से हंस पडीं | अच्छा डर है तेरा | खुद भी मरती और मिहिर को को भी मारती | पता नहीं शादी के बाद क्या करेगी ये | मैंने कुछ शरमाते हुए कहा -`` जब कोई शादी करेगा तो क्या मेरे प्रति उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी |                              अम्मा इस पर कुछ गम्भीर हो गई | बोलीं -`` अच्छा बात मत बना | मेरे मिहिर के लिए दो अच्छी सी चाय बना कर ला | लेकिन मैं जैसे ही कमरे से बाहर निकली कि आंगन में मेरा पैर फिसल गया | मैं तेज दर्द के कारण वहीं बैठ गई और धीरे धीरे कराहने लगी | अम्मा ने जब मेरी आवाज सूनी तो चिल्ला कर बोलीं -`` इस लडकी से तो किसी काम को कहना ही पाप है | अब पता नहीं क्या कर लिया है इसने , जो पड़ी पड़ी कराह रही है |``                                            मिहिर तुरन्त मेरे पास आ गये | पहले तो उन्होंने मुझे हल्का सा सहारा देकर उठाने की कोशिश की पर जब दर्द के कारण मैं उन्हें कोई सहयोग नहीं दे पाई तो फिर वह मुझे गोदी में उठा कर कमरे में ले आये  और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया | फिर काफी देर उनके सिर सहलाने के बाद भी जब मैं अधिक सामान्य नहीं हुई तो धीरे से अपना मुंह मेरे कानों के पास लाकर मुझसे बोले -`` क्या ज्यादा चोट आई है ? किसी डॉक्टर को दिखाऊँ |``                         मैंने कहा -`` नहीं , चोट तो अधिक नहीं है | पर दिल बहुत घबरा रहा है |``
अम्मा बोलीं -
`` बेटा ! इसे एक कप गर्म दूध में जरा सी हल्दी मिला कर दे दे | दूध रसोई में सामने ही पलहडी पर भगोने में रखा है | अभी दो मिनट में ठीक हो जायेगी |``                                    वास्तव में हल्दी मिला गर्म दूध पीकर मुझे बड़ा आराम मिला | मुझे लगा  कि अगर मैं कोशिश करूं तो अब शायद चल सकती हूँ | पर मैं जैसे ही उठ कर बैठी कि तुरंत मिहिर मेरे पास आकर बोले -`` क्यों , क्या हुआ ?``                                               ``  कुछ नहीं `` मैं कुछ आगे  खिसकते हुए बोली -`` जरा कोशिश करके रसोई तक जाकर देखती हूँ | अम्मा ने तो अभी खाना भी नहीं खाया है | उनकी चाय तो मेरे गिरने से खटाई में पड़ ही गई |`` फिर मिहिर मुझे एक छोटी सी बच्ची की तरह पूरा सहारा देकर धीरे धीरे रसोई तक ले गये और वहां उन्होंने मुझे कोई काम नहीं करने दिया | मैं तो बस उन्हें कौन सी चीज कहाँ रखी  है , खड़े खड़े यह बताती रही |`` खाना खाते खाते जब अचानक अम्मा ने घड़ी देखी तो नौ बज रहे थे | वह बड़ी चिन्तित सी होकर मिहिर से बोली -`` तुम्हें घर जाने में देर तो नहीं हो गई | कहीं तुम्हारी माँ तुम पर नाराज तो नहीं होंगी | मिहिर ने बताया कि अब उनकी माँ यहाँ नहीं हैं | वह अब अपनी बेटी के पास पटना में रह रही हैं | वह भी अब वार्डन हो जाने के बाद कॉलिज के छात्रावास में रह रहे हैं | इसलिए ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है |                                          अगले दिन मेरी चोट काफी ठीक हो गई | पर कुछ लंगड़ा लंगड़ा कर अवश्य चलना पड़ रहा था | जब सुबह मिहिर मेरा व अम्मा का हाल जानने के लिए घर आये मुझे लंगड़ाते देख कर हंसते हुए बोले -`` तुम तो इस समय बिलकुल महाभारत सीरियल के शकुनि जैसी लग रही हो | पेंटल सीरियल में बिलकुल ऐसे ही चलता था |`` मैन कहा -`` आपको मेरी चाल तो दिखाई दे  रही  है | पर मेरी परेशानी दिखाई नहीं दे रही | मैं ही जानती हूँ मेरे कितना दर्द हो रहा है | मैं कैसे चल पा रही हूँ |``                                                                 अम्मा हंस कर बोली -`` मिहिर ठीक ही तो कह रहा है | सीरियल तो मैंने भी देखा है | शकुनि बिलकुल ऐसे ही चलता था | इसमें बुरा मानने की क्या बात है |`` फिर दुछ देर अम्मा से बात करने के बाद मेरे पास रसोई में आ गये और जब तक मैं नाश्ता तैयार करती रही मुझे कभी अपने कॉलिज की बातें कभी चुटकुले सुना कर मेरा दर्द से धयान बटाते रहे |                                                                            इसके बाद मेरे मिहिर के बीच गुरु शिष्य की सीमायें दिन पर दिन कम होती चली गईं | मैं पहले जो बात उनसे कहने में बहुत संकोच करती थी , अब काफी खुल कर कहने लगी | वह मुझे शिक्षक की जगह दोस्त ज्यादा लगने लगे | मिहिर ने भी मुझसे अपनी घरेलू ही नहीं बहुत सी निजी बातें भी निस्संकोच होकर साझा करनी शुरू कर दी |                                                        एक दिन पापा बैंक में आडिट चलने के कारण जब शाम को पांच बजे तक नहीं आये तो मैं अम्मा को चाय पिला कर अपने कमरे में पढने बैठ गई | मिहिर अधिकतर मुझे पढ़ाने ६ बजे के बाद ही आया करते थे | पर उस दिन जाने कैसे सवा पांच बजे ही आ गये | अम्मा की चाय पीकर कुछ झपकी सी लग गई थी | इसलिए वह उनके पास न रुक कर चुप चाप मेरे कमरे में आये और पीछे से मेरी दोनों आँखें मींच ली | मैं कुछ नहीं बोली | बस मैंने अपना पैन पर मेज पर रख दिया | पर उसके बाद मैंने जैसे ही उनके हाथों पर अपने हाथ रखे कि उन्होंने तुरन्त मेरी आँखें खोल दी और हंसते हुए बोले -`` लगता है तुम कभी आँख मिचोनी नहीं खेलीं | तुमसे तो मुझे पहचाना ही नहीं गया |``                            मैं फिर धीरे से उनसे बोली -`` आपने समय ही कहाँ दिया पहचानने का | बस जब मैं पहचानने की कोशिश कर रही थी कि आपने मेरी आँखें खोल दी |``मेरी बात सुन कर मिहिर ने कुछ पल मुझे बड़ी अजीब सी दृष्टि से देखा फिर मुस्कुराते हुए बोले -`` अच्छा तो तुम हार को भी अपनी जीत सिद्ध करना चाह रही हो |``                                                      मेरे मुख से तब अचानक निकल पड़ा - भला आपसे कौन जीत सकता है | आप किसी को कुछ कहने या करने का अवसर ही कहाँ देते हैं | फिर मैं तो आपसे हर तरह छोटी हूँ | पर हाँ ,कुछ दिन से मैं एक बात अवश्य देख रही हूँ कि चाहे कोई भी काम हो आप सारी गलती मुझ पर ही मढ़ देते हैं | यह बात अब तक तो दैनिक जीवन में ही हो रही थी | पर अब तो वह मेरे साथ  सपनों में भी होने लगी |                                                      कल मैंने एक सपना देखा कि मैं और आप शोले पिक्चर देखने गये हैं | उसमें जब डाकू द्वारा पुलिस अधिकारी की दोनों बाँहें काटने वाला द्रश्य आता है तो एक साथ मेरी धडकनें बहुत तेज हो जाती हैं | डर के कारण सब शरीर कांपने लगता है | मैं आँखें बंद करके आपका एक हाथ अपनी दोनों हथेलियों में दबा कर आपसे चिपट सी जाती हूँ | अपना सर आपके कंधे पर रख देती हूँ | पर एक मिनट बाद ही आप अपना हाथ मुझसे छुडा लेते हैं | जब मैं शिकायत करती हूँ कि क्या मैं घबराहट में भी ज़रा सी देर आपका हाथ नहीं पकड़ सकती | तो आप कहते हैं -`` सच दो खटमल बहुत जोर से काट रहे थे | बहुत तेज खुजली मच रही  थी | अगर मैं हाथ नहीं हटाता तो उनसे अपने को कैसे बचाता | मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ | किसी से भी पूछ लो | इस हॉल की हर कुर्सी में खटमल हैं |``                                                          मेरा सपना सुन कर मिहिर जोर से हँस पड़े और बोले -`` क्या तुम्हें किसी खटमल ने नहीं काटा ?``                                 ``नहीं मुझे किसी ने नहीं काटा | अगर काटता तो क्या पता नहीं चलता |`` मिहिर बोले -`` शायद उन्हें तुम्हारा खून मीठा नहीं लगा होगा |`` `` हाँ जी , मैं तो बाहर से भी कडवी हूँ और खून भी मेरा जहरीला है | तभी तो मुझे सब झिड़कते रहते हैं |``       मेरी बात सुन कर मिहिर एक साथ बहुत भावुक हो गये और तुरंत कुर्सी से उठ कर मुझे अपने वक्ष से लगा के मेरा माथा चूमते हुए बोले -`` तुम तो हंसी मजाक की बातों को भी गम्भीर रूप में ले लेती हो | ज़रा बताओ - कौन झिड़कता है तुम्हें |``                                   मैंने कहा -``  मैं किसी और की बात नहीं कहती | पर आपका ज़रा सा रूखापन , उपेक्षा मुझसे बिलकुल सहन नहीं होती | सपने में भी नहीं |`` मिहिर बोले -`` अच्छा भई मैं अब भविष्य में इस बात का पूरा ध्यान रखूंगा | ठीक है |``                                              इसके बाद कई दिन वातावरण काफी गम्भीर रहा | छात्रों की बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी के लिए छुट्टियाँ होने वाली थीं | इसलिए मिहिर उन्हें विद्यालय समय के बाद भी रोक कर अच्छे अंक पाने के उपयोगी टिप्स देने में लगे थे | बस भाग दौड़ में घर आते और मेरी नियमित पढ़ाई करा कर होस्टिल चले जाते | इसके बाद परीक्षाएं देने में एक माह कैसे कहाँ निकल गया कुछ पता नहीं चला |                                                                   परीक्षायें समाप्त हो जाने के बाद मैंने सोचा था कि अब मैं भी खाली हो  जाऊँगी और मिहिर भी | तो मैं उनसे खूब देर बातें किया करूंगी | पर उन्होंने तो बिलकुल आना ही छोड़ दिया | जब उन्हें न आये आठ नौ दिन हो गये तो अम्मा पापा से बोली -`` आप किसी से पता तो कीजिये कि मिहिर किसी परेशानी में तो नहीं है | बेचारा बिना परिवार के यहाँ अकेला रह रहा है | अगर हम उसके सुख दुःख के बारे में नहीं सोचेंगे तो और कौन सोचेगा | वह तो मुझसे उस दिन ये कह कर गया था कि मैं प्रति दिन की तो बात नहीं कहता पर हाँ दूसरे तीसरे दिन अवश्य आता जाता रहूँगा |``       


   शाम को जब मैं और पापा होस्टिल पहुँचे तो बाहर ही हमें होस्टिल का चौकीदार मिल गया | उसने बताया कि सर को पिछले पांच छ: दिन से बुखार आ रहा है | डाक्टर साहब कई दवा बदल चुके हैं पर कोई ख़ास फायदा होता नहीं लग रहा है | इसके बाद जब हम उनके कमरे पर पहुँचे तो वो गहरी नीद में सो रहे थे | पापा फिर मुझे कमरे में छोड़ कर डॉक्टर को लेने चले गये |  मैंने जब मिहिर पास जाकर उनका माथा छुआ तो वह बुरी तरह तप रहा था | मैं फिर उनके पलंग पर ही बैठ कर उनका माथा सहलाने लगी | पर उस समय वो इतनी गहरी नींद में थे कि बहुत देर तो उन्हें मेरे सर दबाने का कुछ पता ही नहीं चला | उसके बाद जब आँख खुली तो मुझे पास बैठा देख कर आश्चर्य से बोले -`` अरे ! तुम कब आईं ? और कौन साथ आया है |``                                          मैंने कहा -`` अम्मा आपके कई दिन से घर न आने के कारण बहुत परेशान हो रही थीं | उन्होंने ही आपको देखने के लिए मुझे और पापा को यहाँ भेजा है | मेरी बात सुन कर मिहिर कुछ नहीं बोले | बस चुप चाप कमरे की छत की ओर देखने लगे | तभी पापा डॉक्टर साहब को लेकर कमरे में आ गये और उनका निरीक्षण करने के बाद एक इंजेक्शन लगा कर बोले -`` ऐसी चिता की कोई बात नहीं है | मैं दवा दे रहा हूँ | कल सुबह तक बुखार अवश्य उतर जायेगा |`` डॉक्टर साहब के जाने के बाद  जब मैं फिर उनका सर दबाने लगी तो मिहिर मेरी ओर देख कर बोले -`` अब तो बहुत देर हो गई तुम्हें सर दबाते | थक जाओगी |``                              मैंने कहा -`` इस समय मेरी थकन अधिक महत्वपूर्ण है या आपका दर्द |``                                                                                                                                                   मेरा जवाब सुन कर एक साथ उनकी आँखें भर आई | जिससे पापा तुरंत अपनी कुर्सी से उठ कर उनके पास जाकर उनका हाथ पकड़ कर बोले -`` बेटा ! क्या कुछ परेशानी है ? क्या डॉक्टर को बुलाऊँ ?``                                                   मिहिर बोले -`` अंकल ! ये आंसू किसी परेशानी के नहीं हैं | ये तो आप जो प्यार , अपनापन मुझे दे रहे हैं , उसके आंसू हैं | aaआज मैंने पहली बार देखा कि पारिवारिक सुख क्या होता है | मैंने तो अब तक अपनी सोतेली माँ वाला घर ही देखा था | देखिये मेरे चार पाँच दिन घर न जाने से ही आन्टी  कितनी परेशान हो गई | आप भी मेरा हाल देख कर तुरन्त डॉक्टर को लेने चले गये | अनु को भी देखिये जब से यहाँ आई है बिना रुके मेरा सर दबा रही है | अंकल ये सब मेरे लिए कोई छोटी बात नहीं है |``                                                                  ``बेटा ! तुम तो हमारे लिए हमारे घर के सदस्य जैसे हो | तुमने जिस तरह अनु को पूरी लगन और समर्पित भाव से उसे पढ़ाया है , उसकी हर पल हिम्मत बढाई है , वह मैं और मेरी पत्नी कभी नहीं भूल सकते | मैं तो ये कहूँगा कि जब तक तुम पूरी तरह स्वस्थ न हो जाओ हमारे घर पर ही चल कर रहो |``                                                       `` नहीं अंकल , मेरा यहाँ रहना बहुत जरूरी है | वैसे कोई ऐसी परेशानी भी नहीं है | यहाँ बहुत लोग मेरी देख भाल करने के लिए हैं |``                             मिहिर को ठीक होने में चार दिन लग गये | उसके बाद जब वह शाम को घर आये तो मैं अम्मा के साथ तभी तभी अपनी एक सहेली  की जन्म दिन की पार्टी से लौटी थी | उस समय अम्मा का मूड बहुत खराब था | वह पार्टी में होने वाली अशिष्टता व् लडके लडकियों के निर्लज्ज व्यवहार को पचा नहीं पा रही थीं | पर उन्होंने जैसे ही मिहिर को देखा अपनी सारी खीज मन में दबा कर उनसे बोलीं -`` अब कैसी तबियत है तुम्हारी ? सच तुम्हारे न आने से सब कुछ बड़ा सूना सूना और नीरस लग रहा था |``                                                       मिहिर  ने फिर जैसे ही  उनसे उनका हाल जानने के बहाने पूछा कि वह  बीमार होने पर भी किसकी पार्टी में गई थी | तो उन्हें जैसे अपने मन का सब गुबार निकलने का सुअवसर मिल गया | बोलीं -`` अरे अनु  इम्तहान देने के बाद घर में पड़ी पड़ी बोर हो रही थी | मैंने सोचा कि पार्टी में जाकर इसका कुछ मन बहल जायेगा | पर ऐसी पार्टी से तो भगवान बचाये | अब कहीं कोई लिहाज शर्म नहीं बची | अच्छा मुझे एक बात बता कि इस इन्दु को किसी ने कभी जरा सी तमीज नहीं सिखाई | या इसके दिमाग में कोई कमी है | इसके घर वालों ने इसे कभी इतना भी नहीं बताया कि दूसरे के घर जाकर कैसे उठते बैठते हैं | लडकियों से , बड़ों से कैसा व्यवहार करते हैं | एक जरा से लडके ने सारी पार्टी को तमाशा बना दिया | सच कह रही हूँ कि अगर उसने यह सब मेरे घर में किया होता तो चांटों से ही नहीं , सन्टी से उसकी पिटाई करती | अरे भई क्रीम वाला केक क्या कोई मुंह पर मलने के लिए मंगाता है | इस लडके ने तो सच सारी हदें पार कर दीं | उसने रीमा के तो बस मुँह पर ही क्रीम मली पर अनीता के तो मुंह सर गर्दन के बाद उसके कुरते के अन्दर क्रीम डालने के लिए उसने उसे नीचे गिरा लिया | और देखो उसे कोई रोकने वाला नहीं था | सब खड़े खड़े हँस रहे थे और तालियाँ बजा रहे थे | सच ऐसी बेशर्मी मैंने कभी कहीं नहीं देखी |”                                  पापा जो पास ही खड़े थे , उनके बिस्तर की सलवटें ठीक करते हुए उनसे बोले -`` अच्छा अब तुम कुछ देर लेट कर आराम करलो |                                               रात को जब नौ बजे मिहिर होस्टिल जाने के लिए खड़े हुए तो उस समय बिजली नहीं आ रही थी | इसलिए पापा ने मुझे टार्च लेकर जीने में प्रकाश दिखाने   के लिए उनके साथ भेज दिया | मार्ग में मैंने उनसे बड़े संकोच के साथ कहा --``आज तो आप एक पल भी पढने के कमरे में नहीं बैठे | मुझे तो आपसे आज न जाने कितनी बातें करनी थी | आपके पैर छूने थे | आपका आशीर्वाद लेना था | वह आप ही तो हैं जिसने मुझे इन्दु से बचा दिया | नहीं तो उसके साथ ताश कैरम खेलते खेलते मैं उसके निकट आती जा रही थी | सच कहूं तब वह कुछ दिन से मुझे काफी अच्छा लगने लगा था | इसलिए कभी कभी जब वह एकांत पाकर कोई फुलका मजाक भी करता था तो मैं उससे कुछ नहीं कहती थी | पर आज जब मैंने उसका असली रूप देखा तो आपकी तिगरी मेले के समय कही एक एक बात याद आ गई | सच आप कितने दूरदर्शी और बड़े ह्रदय वाले हैं | काश मेरी जन्म कुण्डली में भी कोई आप जैसा इंसान मेरे जीवन साथी के रूप में लिखा होता !| ``                                                                              मेरी बात सुनकर वह हंसते हुए बोले -``और मेरी जैसी सौतेली माँ सासू माँ के रूप में मिल गई तो |``                                                                          मैंने कहा -- `` जब आप जैसा प्यार , अपनापन सहानुभूति हर पल साथ होंगी तो सासू माँ की हर प्रताड़ना बहुत बौनी पड़ जायेगी |``                                            लेकिन इसके बाद मिहिर से भेंट नहीं हो सकी | सवेरे ही अचानक अम्मा की तबीयत बहुत खराब हो गई और उन्हें तुरन्त दिल्ली ले जाना पड़ा | वहां चिकित्सकों ने उनके पेट की रसौली के तुरन्त आपरेशन की सलाह दी | जिससे मैं एक महीने से अधिक के लिए वहां फँससासू माँ के रूप में मिल गई तो  गई | मिहिर अस्पताल में अम्मा को देखने एक दो बार दिल्ली अवश्य आये पर उनसे मेरी कोई ख़ास बात नहीं हो सकी | उसके बाद बोर्ड की उत्तर पुस्तकों के मूल्यांकन का कार्य प्रारम्भ हो जाने के कारण उनका आना सम्भव नहीं हो सका | पर अम्मा के हाल चाल जानने के सम्बन्ध में उनके पत्र मुझे बराबर मिलते रहे |                                                           आपरेशन के बाद दादा जी मुझे और अम्मा को अपने साथ बरेली ले गये | क्योंकि लम्बी छुट्टियाँ लेने के कारण पापा का स्थानान्तरण आगरा हो गया था और वहां उन्हें कोई सुविधाजनक निवास नहीं मिल पा रहा था | बरेली पहुँच कर मेरा जीवन कुछ ठहर सा गया | दादा जी बहुत पुराने विचारों के थे | उनके रहते मूवी देखने की बात तो दूर उपन्यास तक पढना पाप था | इसलिए बस सारा दिन ऐसे ही खाली पड़े पड़े बीत जाता था |                                                        एक दिन मेरे साथ बड़ी विचित्र घटना घटी | दोपहर को जब डाकिया आया तो दादा जी बाहर ही बैठे हुए थे | मेरे नाम जब मिहिर का पत्र देखा तो एक साथ गोल गोल आँखें करके मुझ से बोले -`` किसकी चिट्ठी है ये ?`` मैंने जब कुछ सहमते  हुए कहा कि ये मेरे टीचर  हैं | मुझे अमरोहा में पढ़ाया करते थे | तो पहले से भी अधिक तेज आवाज में बोले -`` देखो ! ये इस तरह की चट्ठी बाजी मुझे बिलकुल पसंद नहीं है | आज तो जो चिट्ठी आ गई वो आ गई | पर अब आगे कोई चिट्ठी नहीं आनी चाहिए |``                                                                                मैं उस दिन बहुत देर तक रोती रही | मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मिहिर से पत्र न लिखने के लिए कैसे कहूं | जब कि मैंने ही तो पीछे पड़ कर उनके मन में यह प्यार की भावना जगाई है | मैंने ही तो हर दूसरे तीसरे दिन पत्र प्रेषित कर उन्हें पत्र लिखने को बाध्य किया है | अब मैं ही उन्हें कैसे लिखूं कि अब मेरा आपसे कोई सम्बन्ध नहीं है | अब आप मुझे पत्र मत लिखा कीजिये | फिर वह तो अब अम्मा के हाल चाल जानने के लिए पत्र लिख रहे हैं | मैंने जब दादा जी की बात अम्मा को बताई तो वह बड़ी सहज होकर बोली कि तू मिहिर से अपनी जगह पापा के नाम पत्र लिखने को कह दे | फिर सब ठीक हो जायेगा | पर पता नहीं मिहिर ने मेरी बात का क्या अर्थ लगाया | उन्होंने फिर मुझे कोई पत्र नहीं लिखा |                                                        इस घटना के एक वर्ष बाद मेरी शादी तय हो गई | अधीर हाथरस के एक राजकीय इन्टर कॉलिज में प्रवक्ता थे | इस सम्बन्ध के विषय में मुझसे कुछ नहीं पूछा गया | मैं भी जाने क्यों कुछ नहीं कह पाई | पर मन कई दिन बड़ा उदास उदास सा  रहा | एक दिन तो मैं रात को बहुत देर तक मिहिर के पत्र पढती रही | उनमें न जाने कैसी आत्मीयता भरी थी कि एक साथ मिहिर से मिलने को मन आतुर हो उठा और मैं तुरन्त उन्हें पत्र लिखने बैठ गई | पर बहुत देर तक मेरे कुछ समझ में नहीं आया कि उन्हें कैसे बुलाऊँ | कैसे यह लिखूँ कि एक महीने बाद  मेरी शादी है | फिर भी साहस करके मैंने अधीर का परिचय दिए बिना अपनी शादी की बात उन्हें लिख दी |                                                                 मिहिर ने मेरे पत्र का तो उत्तर नहीं दिया , पर पांच दिन बाद स्वयं आगरा आ गये | अम्मा और पापा ने जब अचानक उन्हें देखा तो दोनों कितने खुश हुए मैं बता नहीं सकती | बहुत देर तो उन्होंने मुझे उन्हें ठीक से प्रणाम तक करने का अवसर नहीं दिया | बस कभी अम्मा चाय बनाने के लिए रसोई में भेज देती , कभी पापा बिस्कुट व घर की बनी मठरी अचार लाने के लिए | तीसरे पहर  जब दोनों कुछ शादी का सामान लेने बाजार गये तो मुझे बस तभी मिहिर से अकेले में कुछ बात करने का अवसर मिला | पर शायद अब मिहिर के पास कुछ भी कहने के लिए नहीं बचा था | उन्होंने तो बस मेरे सारे पत्र सूटकेस से निकाल कर मेरे सामने रख दिए और बोले - इन्हें अच्छी तरह गिन लो | मेरे विचार से शायद पूरे ही हैं | वैसे तुम्हारा एक समूह चित्र भी मेरे पास और है | लेकिन जल्दी में मैं उसे अपने साथ नहीं ला पाया | घर पहुंचते ही उसे डाक द्वारा अवश्य भेज दूँगा |``                                                           मिहिर ने यह सब ऐसे कहा कि मेरी एक साथ आँखें भर आईं | मैं बड़ी मुश्किल से बोली -`` क्या मैंने आपसे इन्हें लाने को कहा था | शायद आप यह समझ रहे हैं कि घर में जो कुछ हो रहा हैं वह सब मेरी मर्जी से हो रहा है |`` मिहिर ने कहा -`` नहीं अनु ! यह बात नहीं है | तुम मुझे गलत समझ रही हो | दरअसल ये पत्र मेरे तुम्हारे अतीत के कुछ अविस्मरणीय प्रसंगों से जुड़े हैं | बीते अन्तराल की अनगिनत मधुर स्मृतियों से सम्बद्ध हैं | इनकी वास्तविकता हम दोनों के अतिरिक्त कोई और नहीं समझ सकता | सोचो , तुम्हारी शादी के बाद ये अगर किसी छोटी सोच वाले व्यक्ति के हाथ पड़ गये तो तुम्हारे कितनी विचित्र स्थिति हो जायेगी | इसलिए मैं बहुत खुश हूँ कि ये जिसकी अमानत हैं मैं इन्हें आज उसी को सौंप रहा हूँ | अब ये तुम्हारी मर्जी है कि इन्हें चाहे अपने पास रखो या नष्ट कर दो | वैसे मेरे विचार से किसी भी मरी हुई चीज को राख कर देना ही श्रेयस्कर होता है |                                                         वातावरण आवश्यकता से अधिक गम्भीर हो गया था | फिर भी मैं जाने क्यों उसमें सरसता नहीं ला सकी | मिहिर के आने से पहले  मैंने जाने क्या क्या सोचा था , न जाने कितने प्रश्न उनसे पूछने के लिए मन में उभरते रहते थे पर जब वह आ गये तो मुझे कुछ याद नहीं रहा | वह पूरे दिन घर में रुके  और फिर पहले की तरह आशीर्वाद स्वरुप अपना हाथ मेरे सर पर रख  कर चले गये | पर मैं उनसे एक बार रुकने के लिए तो क्या शादी पर आने के लिए भी जोर देकर नहीं कह सकी | बस गुम सुम सी दरवाजे की चौखट से कमर लगाये उन्हें तब तक अपलक देखती रही जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो गये |                                                                विवाह के बाद मुझे दो वर्ष से अधिक हाथरस में व्यतीत करने पड़े | वहां पहले तो कुछ दिन  सासू माँ साथ रहीं  फिर बड़ी बुआ मेरा अकेलापन दूर करने के लिए आ गईं | उन दोनों के जाने के बाद ही मुझे अधीर के साथ कुछ घुलने मिलने व खुल कर बात करने का अवसर मिला | अधीर में यद्यपि मिहिर जैसी सरलता व्यवहारिक मधुरता तो नहीं थी , फिर भी वह मेरा काफी ख्याल रखते थे | उनकी आत्मीयता देख कर ही  एक दिन मेरे मन में विचार आया कि क्यों न मैं इस बार रक्षाबन्धन पर मिहिर को यहाँ आने के लिए आमंत्रित कर लूं | सोचा इस बहाने उनसे एक बार भेंट भी हो जायेगी और राखी बंधवा कर शायद उनका मन भी कुछ हलका हो जायेगा |                                                               पर मैंने अधीर को बिलकुल गलत पढ़ा था | वह जैसे ऊपर से थे , वैसे भीतर से नहीं थे | मिहिर को घर बुलाने की बात सुन कर एक साथ नाराज हो गये | बोले -`` यह ठीक है मिहिर ने तुम्हें पढ़ाया है और तुम उसे भाई मानती हो | पर मुझे तुम्हारा किसी को इस तरह घर पर बुलाकर मिलना बिलकुल ठीक नहीं लगता | किसी को निमन्त्रण भेजने की कोई जरूरत नहीं है |                                                                                       अधीर की बात सुन कर मैं चुप हो गई | मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अब एक पिंजरे में असहाय पक्षी की तरह हूँ | मेरे सारे पर कतर गये हैं | मुझे अब न किसी को पत्र लिखने का अधिकार है , न किसी से मिलने या बात करने का | यह छोटा सा घर मेरी सारी दुनियां है और अकेले अधीर मेरा पूरा संसार | मुझे बहुत देर तक अमरोहा की बीती बातें याद आती रही | बहुत देर तक आँखों के सामने मिहिर का सरल सा निश्छल चेहरा बार बार घूमता रहा | सच इसके बाद मैं बहुत समय तक स्वम् को सामान्य नहीं कर पाई |                                                          वस्तुत: मिहिर मेरे शैक्षिक अध्यापक ही नहीं , मेरे जीवन के मार्ग दर्शक भी थे | उन्होंने मुझे इन्दु के छद्म प्रेम जाल से केवल मुक्त ही नहीं कराया वरन मुझे सम्मान के साथ जीने की प्रेरणा भी दी थी | अगर समय से उनका संसर्ग न मिला होता तो शायद इन्दु मुझे बिलकुल जीने लायक नहीं छोड़ता | मुझे अच्छी तरह याद है कि तिगरी - मेले से लौटने के बाद इंदु को लेकर शिल्पा दी व अनीता के बीच कितना बड़ा झगड़ा हुआ था और शिल्पा दी न जाने कितने दिन दोनों से बिलकुल नहीं बोली थीं | उन्होंने अनीता का इन्दु के साथ कॉलिज जाना ही नहीं घर में भी साथ साथ उठना बैठना , बात करना बन्द करा दिया था |                           पर अब तो जैसे उन्होंने मेरे लिए कुछ नहीं किया | उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है | बस अब तो अकेले अधीर के साथ ही मुझे सारी जिदगी जीनी है | बस यही सोच कर मेरा धीरे धीरे मन बदलता गया और मैं अपनी वैवाहिक दुनिया में खो गई | एक वर्ष  बाद रश्मि के जन्म ने तो घरेलू कार्यों में इतना व्यस्त कर दिया कि मैं अपने जन्म देने वाले मम्मी पापा तक को लगभग भूल सी गई |                                                        इसके बाद हम मथुरा आ गये | यहीं पर हमने रश्मि की पहली वर्ष गाँठ मनाई | यहीं एक दिन जब मैं दोपहर बाद रश्मि को धीरे धीरे थपकी देकर सुलाने का प्रयास कर रही थी तो अचानक मन में जाने कैसे ख्याल  आया कि काश अगर मेरी तरह अधीर के जीवन में भी कोई मिहिर जैसा मार्ग दर्शन करने वाला व्यक्ति आया होता तो वह भी अवश्य बहुत सम्वेदनशील व व्यवहारिक व्यक्ति होते | पर भाग्य से भला कौन जीत पाया है |                                                                                        इसके बाद एक दिन जाने कैसे रश्मि को सुलाते सुलाते मुझे गहरी नींद आ गई | जब आँखें खुली तो अधीर सामने की अलमारी से बड़े खुश खुश अपने शैक्षिक प्रमाण पत्र फाइल से निकल रहे थे | मुझे जगा देख कर एक साथ हंसते हुए बोले -`` aआज मेरे लिए बहुत बड़ा शुभ दिन है | मैं आज अपनी नई डी.आई.ओ.एस. मैडम के घर अपने कॉलिज की कुछ फ़ाइलें लेकर गया था | वह आज कल अपने दूसरे बच्चे के जन्म की तिथि निकट आ जाने के कारण रोज कार्यालय नहीं जा रही हैं | सच बहुत ही अच्छी इन्सान हैं | मुझसे कह रही थीं कि आपका तो सारा शैषिक रिकॉर्ड  बहुत अच्छा है | आपकी तो हर डिग्री में अच्छी प्रतिशत है | तो आप किसी डिग्री कॉलिज में जाने के लिए प्रयत्न क्यों नहीं करते हैं |``                                                           मैंने कहा -`` मैडम ! उसके लिए तो पी.एच.डी. होना बहुत आवश्यक है |`` तो वह बोलीं -`` तो इसमें क्या हुआ | क्या आप अपने अच्छे भविष्य के लिए अपना एक डेढ़ वर्ष खर्च नहीं कर सकते | लोग तो पाँच दस रूपये के लाभ के लिए जाने क्या क्या करते हैं | आप इसी रविवार को मेरे इनसे बात करके देखिये | अगर वह तैयार हो गये तो एक साल में ही आपका शोध प्रबन्ध पूरा करा देंगे | सच वह बहुत ही हेल्पफुल नेचर के सम्वेदनशील इंसान हैं |"                                      मैंने फिर अधीर के मन को टटोलने के विचार से पूछा - तो क्या आप रविवार को मैडम के घर जायेंगे |                                                                  `` क्यों नहीं जाऊँगा , अधीर  बड़े तपाक से बोले |``                                मैंने उनका इतना अच्छा मूड पहले कभी नहीं देखा था | उन्हें इस तरह प्रसन्न देख कर मुझे लगा जैसे अवश्य ही मेरे जीवन में कुछ अच्छा होने वाला है |                                                                           रविवार को जब अधीर मैडम के घर गये तो मैं घर के मन्दिर में दीपक जलाकर निरन्तर भगवान से प्रार्थना करती रही कि कैसे ही कुमार सर अधीर को कोई विषय अपने निर्देशन में शोध के लिए दे दें | और शायद भगवान तक मेरी विनती पहुंच गई | क्योंकि दोपहर बाद जब अधीर घर आये तो वह इतने अधिक खुश थे कि उन्होंने आते ही मुझे बाँहों में भर कर गोदी में उठा लिया और बोले -`` अनु ! कुमार सर तो मैडम से भी ज्यादा सह्रदय हैं | मुझे जाते ही अपने पास बिठला कर पहले अपने हाथ से बना कर चाय पिलाई फिर बस मुझसे कुछ बातें पूछ कर जरा सी देर में मेरे शोध प्रबन्ध की रूप रेखा तैयार कर के बोले -`` अब बस तीस चालीस दिन हैं आपके पास घूमने फिरने के लिए | उसके बाद जैसे ही विषय स्वीकृत हो जायेगा , एक दिन के लिए भी कहीं आने जाने नहीं दूंगा |``                                          सच मैंने जैसा उनके बारे में सुना था , वह तो उससे भी कहीं आगे निकले | तुम्हें पता है मैडम बचपन से ही पोलियो ग्रस्त हैं और उनके सीधी तरफ के हाथ पैर दोनों अक्षम हैं | वह न तो सामान्य रूप से चल सकती हैं , न घर का कोई काम कर सकती हैं | फिर भी दोनों के बीच कितना प्यार है , मैं तुम्हें बता नहीं सकता |``                                         मैंने कहा -`` जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं , दूसरों के दुख़ अपने दुःख समझते हैं - उनका भगवान् भी हमेशा साथ देते हैं |``                                                             इसी बीच एक दिन मैडम का बाथ रूम में पैर फिसल जाने से उनके कूल्हे में हलकी सी सूजन आ गई | उनका सीधा हिस्सा तो पहले से ही पोलियो ग्रस्त था | अब बायाँ हिस्सा भी शिथिल पड़ गया | तो वह पूरी तरह बिस्तर पर लेट गई | डा कुमार दो दिन के लिए बाहर गये हुए थे | जब अधीर को मैडम की चोट का पता चला तो वह कॉलिज की छुट्टी होते ही बिना घर आये सीधे उनके निवास पर पहुंच गये | उस समय नर्स उनकी मसाज कर रही थी | कुछ देर बाद जब वह कमरे से बाहर आई तो उसने बताया कि चोट कोई विशेष चिता जंनक नहीं है | बस मैडम अगर दो तीन दिन पूर्ण विश्राम कर लेंगी तो बिलकुल ठीक हो जायेंगी |                               वैसे तो मैडम के पास एक महिला सेविका हर समय रहती थी | पर फिर भी अधीर रात को उनकी देख रेख के लिए मुझे शाम ढलते ही उनके घर छोड़ आये | मैं जब उनके कमरे में पहुंची तो सामने ही दीवार पर मिहिर और मैडम का बड़ा सा चित्र देख कर एक साथ चोंक पड़ी | मैडम उस समय डबल बैड पर लेटी किसी से फोन पर बात कर रही थीं | उन्होंने मुझे हाथ से इशारा करके अपने पास ही बिठला लिया | बस फिर जल्दी से अपनी बात समाप्त कर बड़े प्यार से मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर मुस्कुराते हुए बोलीं -`` क्या नाम है आपका ?``                  मैं कमरे में मिहिर का चित्र देख कर उस समय बिलकुल सामान्य नहीं थी | मेरी धडकनों में एक अजीब सा तूफान उमड़ रहा था और गला बंधा बंधा सा लग रहा था | फिर भी मैं अपने को काफी सामान्य होने का प्रयास करते हुए बोली -`` जी , अनुपमा |``                             `` अरे , इस नाम की लडकी को तो इन्होने बहुत दिन पढ़ाया है | आप कहाँ की रहने वाली हैं ?``                                                                                    ``जी , मेरा मायका तो बरेली में है और ससुराल फिरोजाबाद में |``                      `` नहीं , वह लडकी तो शायद अमरोहा की थी | कभी कभी ये मुझसे बहुत देर उसके बारे में करते हैं | कहते हैं कि वह बहुत ही अच्छी और सीधी लडकी थी | उसे पढाते समय ही उन्हें यह अहसास हुआ कि किसी भी लडकी को प्यार और सहानुभूति की कितनी आवश्यकता होती है | वह इन दोनों के आभाव में स्वयं को कितनी  असहाय व निर्बल महसूस करती है | इसका शायद कोई अनुमान नहीं लगा सकता |                                                                   सच , मैं भी जब अकेली होती हूँ तो मुझे कई बार यह लगता है कि शायद कुमार ने उसी लडकी के खालीपन को ध्यान में रख कर मुझसे शादी की होगी | वर्ना मैं शारीरिक रूप से तो बुरी तरह अक्षम थी ही , आयु में भी इनसे चार साल बड़ी थी | जब कि वह विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर होने के साथ एक अत्यन्त आकर्षक छवि वाले व्यक्ति हैं और उन्हें कोई भी अच्छी से अच्छी लडकी मिल सकती थी |``                                       इसी बीच जब मैडम एक पल कुछ अपना तकिया खिसकाने के लिए बात करते करते रुकीं तो मैंने उनसे बड़ी उत्सुकता से पूछा -`` तो कुमार सर आपको कहाँ मिले ? उनसे आपका कैसे परिचय हुआ ?``                                                         मैडम कुछ आराम से बैठते हुए बोलीं -`` इसकी बड़ी रोचक कहानी है | शादी से पहले मैं नोयडा के एक राजकीय कन्या इन्टर कॉलिज में प्रवक्ता थी और कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे | लेकिन हम दोनों को अपने अपने गन्तव्य पर जाने के लिए एक ही बस स्टॉप से बस पकडनी होती थी | बस वहीं हम दोनों का परिचय हुआ | फिर कुछ दिन बाद जब हम काफी खुल कर अपनी घरेलू बातें भी करने  लगे तो एक दिन उन्होंने वैसे ही मुझसे पूछ लिया कि आप शादी क्यों नहीं कर लेती हैं ? तो मैंने बात टालने के लिए उनसे हंसते हुए कहा-`` मेरा हाल नहीं देख रहे आप | कौन करेगा मुझसे शादी |``                                                                        .      तो वह बोले-`` मैं आपका हाल देख कर ही तो आपसे यह कह रहा हूँ | आपको किसी के स्थाई सहारे की बहुत जरूरत है | शादी तो दो आत्माओं के मिलन का नाम है | किसी अंग की अक्षमता उसके बीच में कहाँ से आ गई | अच्छा आप ही बताइए कि अगर शादी के बाद किसी दुर्घटना या बीमारी के कारण किसी का कोई अंग शिथिल हो जाता है तो क्या दोनों के सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं |``                                                                    मैंने कहा -`` यह आपकी अपनी सोच हो सकती है , सारे समाज की नहीं |`` कुमार मेरी बात सुन कर फिर कुछ नहीं बोले | बस चुप चाप बैठे तब तक खिड़की से बाहर देखते रहे जब तक उनका बस स्टाप नहीं आ गया | फिर सीट से उठते समय मुझे अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए बोले -`` मेरा यह कार्ड रख लीजिये | इसमें मेरा परिचय व फ़ोन नम्बर है | अगर इसका विवरण आपको कुछ ठीक लगे तो आपके पापा कभी भी मुझसे बात कर सकते हैं |``                            बस फिर अगले दिन ही मैंने सब कुछ अपने पापा को इनके विषय में बता दिया | लेकिन जब पापा ने इनसे बात करने के लिए दिल्ली आने को समय माँगा तो पता है इन्होने उनसे क्या कहा ? इन्होने पापा से कहा - पापा आप वृद्ध हैं | लम्बे समय से बीमार भी चल रहे हैं | फैजाबाद से दिल्ली का लम्बा सफर कैसे तय करेंगे | शादी का प्रस्ताव तो मेरा है | प्रभा जी का हाथ मांगने तो मैं आपके पास आऊँगा | अब याचना तो मुझे आपसे करनी है | मैं रविवार को आपके पास पहुचने की सोच रहा हूँ | अगर आपके मन में इस सम्बन्ध को ले कर कोई जरा सी भी उलझन हो तो कृपया मुझे बताने में संकोच मत कीजिये |``                                            इसके बाद जब ये फैजाबाद पहुँचे तो पापा इन्हें देख कर हत प्रभ रह गये | उनकी समझ में नहीं आया कि इतना योग्य व सुन्दर लडका उनकी अपाहिज बेटी से कैसे शादी कर रहा है | उन्होंने बड़े संकोच के साथ इनसे दोनों हाथ जोड़ कर कहा -`` बेटा ! प्रभा न जाने कितने हकीमों डाक्टरों के इलाज व मन्नतों के बाद हमें मिली है | इसका न कोई भाई है न बहिन | क्या हमारे मरने के बाद तुम जन्म भर इसे अकेले सहारा दे पाओगे | ये तो बिलकुल अक्षम और अभागी है |``                                                                  कुमार एक साथ अपनी जगह से उठ कर पापा के पास पहुँच कर उनके दोनों जुड़े हाथ खोलते हुए बोले -`` मैं तो आपके बेटे की तरह हूँ | क्या आप मुझसे कोई बात ऐसे हाथ जोड़ कर कहेंगे | मैं तो खुद आपके पैर छू कर कुछ मांगने आया हूँ | आप प्रभा जी के एक जन्म की बात कह रहे हैं , मैं तो अगर  आप कहें उनकी सात नहीं दस जन्म की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूँ | पापा जहां तक उनके दुर्भाग्यशाली होने की बात है , उसमें भी वह मुझसे जयादा अभागी नहीं हैं | उनके पास आप जैसे माता पिता तो हैं , आपका प्यार सहानुभूति तो है | पर मेरे पास तो वह भी नहीं है | मैंने तो बस बचपन से अपनी सोतेली माँ की उपेक्षा और प्रताड़ना ही देखी है |``                                                                              इसके बाद पापा कुछ नहीं बोले और हम दोनों का विवाह हो गया | अब मैं जिला विद्यालय निरीक्षक हूँ और कुमार विश्व विद्यालय में वरिष्ठ प्रोफेसर | सच उनका साथ पाकर मुझे ऐसा लगता है जैसे सब कुछ मेरे पास है | इसके बाद जब मैडम कुछ देर के लिए जरा चुप हुई तो मैंने अपने मन में पल रही उत्सुकता को मिटने के विचार से उनसे पूछा -`` मैडम आप अभी कुछ देर पहले अमरोहा की जिस लडकी की बात कर रही थी , क्या कुमार सर उससे प्यार करते थे ?``                                                                                मेरा प्रश्न सुन कर वह पहले तो बहुत जोर से हंसीं फिर कुछ मुस्कुराते हुए बोलीं -`` नहीं , वह उसे प्यार क्या करते | वह तो उनके लिए बच्ची की तरह थी | कुमार तो तब दो एम.ए. पूरे करने के बाद पी.एच.डी. कर रहे थे | वह तो उनसे ट्यूशन पढती थी और उस समय बी. ए की परीक्षा दे रही थी | पर अपने माँ बाप की अकेली सन्तान होने के कारण उसे प्यार व सहानुभूति की बहुत आवश्यकता थी | पिता जी अपने ऑफिस चले जाते थे और माँ अपने घर गृहस्थी के कामों में जुटी रहती थीं | जिससे उसके साथ न कोई बात करने वाला था न उसका अकेलापन दूर करने  वाला | बस इसी कमी के कारण वह अपने पडौस में रहने वाले किसी लडके के झूठे प्रेम जाल में फंसती जा रही थी | पर जब कुमार को इस बात का पता चला तो उन्होंने उसे हर पग पर सहारा देकर न तो कभी उसे जरा सी कोई मर्यादा तोड़ने दी , न कभी अपनेपन और सहानुभूति की कमी महसूस होने दी |                                                    मैडम की बात सुन कर मैं कुछ देर के लिए बहुत असहज सी हो गई | वह मेरी ही कहानी मुझे कितने अपनेपन से सुना रही थीं | लेकिन मिहिर के मन के मानसरोवर में स्थित कुछ भावनाओं के पावन से अमूल्य मोती  अपनी ग्लानि की झोली में पाकर मुझे ऐसा अवश्य लगा जैसे सिर से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो | मेरी आत्मा एक बहुत बड़े पाप की अनुभूति से मुक्त हो गई हो | जिस अनुपमा को मैं कल तक विष भरा अमृत कह रही थी , वह अब मन्दिर के स्वर्ण कलश की तरह पवित्र हो गई हो |    

21 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आलोक सर,आपके ब्लॉग की कहानियां बहुत अच्छी-अच्छी है परन्तु ब्लॉग पूर्ण नहीं होने के कारण हम उसे ना तो साझा कर पा रहे है और ना ही फॉलो कर पा रहे है ,कृपया उसे पूर्ण कीजिए ताकि हम आपके लिंक को चर्चामंच पर साझा कर सकें,सादर नमन

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  2. श्रद्धेय कामिनी जी ! मार्ग दर्शन के लिए बहुत बहुत आभार | शायद आपने जिस कमी की ओर संकेत किया हैं , अब ठीक हो गई होगी |

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  3. बहुत ही लाजवाब कहानी... शुरू से अन्त तक पाठक को बाँधे रखने में सक्षम...
    बहुत ही रोचक।
    वाह!!!

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  4. मीना जी बहुत बहुत आभार चर्चा में आमंत्रित करने के लिए |

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  5. भावनाओं की तरलता , कोमलता मन को बाँधे रखती है । अति सुन्दर । आभार ।

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  6. अमृता जी अच्छी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  7. आलोक जी,आपकी कहानी ने आखिर तक बांधे रखा। बहुत सुंदर।
    नववर्ष की आपको एवं आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं।

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  8. ज्योति जी ,शुभ कामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , आभार |

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब

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  10. मर्मस्पर्शी कथा रची आलोक जी आपने । इसकी जितनी भी सराहना की जाए, कम ही होगी ।

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    1. जितेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार बहुत रुचिकर सुन्दर टिप्पणी के लिए |

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  11. शकुन्तला जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  12. सरल शब्दों में मर्म छूकर मन को गुदगुदाती है कहानी

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  13. कविता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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