सोमवार, 14 सितंबर 2020

नर्तकी ( कहानी )

 

               नर्तकी ( कहानी )      ---आलोक सिन्हा 

 

a             अम्बुज जब तीन दिन के बाद विभावरी के घर पंहुचा तो वह उससे बिलकुल नहीं बोली और मुँह फुलाये बैठी मेजपोश काढती रही | वह पास ही कुर्सी पर बैठ गया और मेजपोश खींचते हुए बोला -`` पता है , मैं कल सुबह ही पूरे एक साल के लिए बनारस जा रहा हूँ और तुम हो कि काढने से ही फुर्सत नहीं है | क्या यह काम मेरे जाने के बाद नहीं हो सकता|``                                                                              `` तो आपको मुझसे बात करने के लिए समय मिल गया |`` विभावरी ने मेजपोश में सुई लगाते हुए कहा -`` मैं  तो समझती थी कि काम की अधिकता के कारण इंजीनियर साहब के पास किसी से बात  करने के लिए दो पल का भी समय नहीं है |                                                       `` अच्छा तो शायद आप नाराज हैं | चलो यह भी ठीक है | पर क्या यह नाराजगी कल तक के लिए स्थगित नहीं हो सकती | कल जितना मन चाहे नाराज हो लेना |``                                                   `` मैं क्यों नाराज होती तुमसे | क्या तुम्हारे लिए एक अच्छा सा मेजपोश काढना नाराजगी है | पर अच्छा यह बताओ तुम तीन दिन से आये  क्यों नहीं | पता है तुम्हारी कितनी प्रतीक्षा की है |             ``सच विभा कल बनारस जाने की तैयारी में  इतना व्यस्त रहा कि तुम कल्पना नहीं कर सकतीं | बस अब तो पढाई का ये एक साल और पूरा हो जाये तो सब परेशानियों समाप्त हो जाएँ |``                                                                                            `` पर  अभी से जब  तुम्हारा यह हाल है तो पता नहीं पूरे इंजीनियर हो जाने के बाद तो जाने क्या होगा | तब तो पता नहीं मेरी याद भी आयेगी कि नहीं |``                                                       ``खैर , यह सब तो समय ही बतायेगा | मेरे मन में तुम्हारे लिये कितनी बड़ी जगह है | पर हाँ , देखो , इस बार यदि कभी पत्रोत्तर में मुझसे कुछ  देर हो जाये तो नाराज मत होना | क्योंकि यह मेरा अंतिम वर्ष है और मैं अपनी पढाई में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता हूँ | फिर अब बस एक वर्ष की ही तो और बात  है | उसके बाद हमारा विवाह हो ही जायेगा | पर हाँ ऐसा भी मत करना कि पत्र लिखना ही  बिलकुल बंद कर दो |``                                                   अम्बुज विभावरी की खिन्नता समाप्त  कर बनारस आ गया | इस बार यद्यपि वह घर से केवल अध्ययन में पूरी तरह रत रहने का ध्येय लेकर आया था | पर फिर भी प्रति दिन सुबह गंगा स्नान का लालच छोड़ना उसकी शक्ति से बाहर  था | घाट की चहल पहल , मन्दिरों के घंटों की मधुर ध्वनि उसे अनायास ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी | घर से लौटने के दो दिन बाद जब वह गंगा के किनारे पहुँचा तो सुबह के पांच बजे थे और अभी पूरी तरह उजाला नहीं हुआ था | वह दोनों पैर पानी लटका कर सीढ़ियों पर बैठ गया | अभी कुछ ही देर हुई थी कि उसकी दृष्टि कुछ दूर पर पानी में खड़ी एक लड़की पर पड़ी | वह एक साथ चोंक सा पड़ा | क्योंकि जहाँ वह खड़ी थी उससे दो कदम आगे बहाव भी तेज था और पानी की गहराई भी अधिक थी | उससे चुप नहीं रहा गया और बोला -`` देखिये आगे मत जाइये , आगे पानी बहुत गहरा है |``                                                                               लेकिन उस पर अम्बुज की बात  का कोई असर नहीं हुआ | वह ऐसे खड़ी रही जैसे उसने कुछ सुना ही न हो | अम्बुज ने फिर तुरन्त अपने कपड़े उतारे और उसके पास पहुँच कर बोला-`` आपने शायद मेरी बात सुनी नहीं , मैं कह  रहा था कि आगे बहुत गहरा पानी है | अगर नहाना है तो कुछ पीछे हट कर नहा लीजिये |``                                                                `` तो आज का दिन भी शायद ऐसे ही बेकार चला गया |`` वह धीरे से बड़बड़ाई --`` क्या आज आप यहाँ कुछ देर बाद नहीं आ सकते थे | आपको क्या मिलेगा मझे बचाकर | जिसने जीवन की गहराई को देखा हो , कठिनाइयों के तूफानों को सहा हो , उसके लिए गंगा की ये हलकी सी धारा और गहराई कितनी बड़ी हो सकती है |``  `` तो क्या आप आत्म हत्या करने आई हैं |``                                     `` आत्म हत्या करने तो नहीं , हाँ मुझे पुनर्जन्म पाने की इच्छा अवश्य है | क्योंकि मेरा शरीर ही तो अपवित्र है , आत्मा नहीं | पर अब डर है कि कहीं  शरीर की अपवित्रता का विष मेरी आत्मां तक न पहुँच जाये | इसलिए उसे गंगा माँ की पवित्र गोद को सौंपने आई थी | पर लगता है आज आप मुझे कुछ नहीं  करने देंगे |``                                                                                                   अम्बुज की स्थिति विचित्र सी हो गई थी | उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे | लेकिन फिर भी वह अपने को साधते हुए बोला -`` शायद इस समय आप बहुत परेशान हैं | आइये , कुछ देर किनारे पर चल कर बैठते हैं | बाँतें  करने से आपका कुछ मन भी ठीक होगा और गीले कपड़े भी सूख जायेंगे |``                                                                     कुछ देर दोनों धीरे धीरे सीढीयों की ओर बढ़ते रहे | फिर अम्बुज बोला -`` मुझे कोई भी बात बताने में आप संकोच मत कीजिये | मैं यहीं विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा हूँ | मेरा नाम अम्बुज है और मेरे घर के सब लोग मेरठ  में रहते हैं |``                             ``अम्बुज बाबू `` वह सीढ़ियों पर बैठते हुए बोली -`` आप मुझे अगर आप न कह कर  तू कह कर सम्बोधित करें तो शायद अधिक ठीक रहेगा | क्योंकि मैं अब तक अपने लिए यही शब्द सुनती आई हूँ और शायद किसी सीमा तक इसी के योग्य भी हूँ |`                                                                                          `` देखिये , सबका दृष्टि कोण  समान नहीं होता |`` अम्बुज ने अपना मत स्पष्ट करते हुए कहा  -`` मेरे मन में इस समय आपके लिए कितनी सहानुभूति है , यह मैं ही जनता हूँ |``                                                                                           फिर कुछ देर चुप रहने के बाद वह धीरे से बोला -`` क्या आप इस बारे में कुछ नहीं बतायेंगी कि आप इतनी परेशान क्यों हैं | अभी तो आप मुझसे भी छोटी हैं शायद ; आपने दुनियां में अभी देखा ही क्या है |``                                                                                                                                                    ``क्या आप सुन पायेंगे मेरी कहानी | सच , अम्बुज जी बहुत दुःख भरी है | मैनें जो कुछ अपनी इस बीस वर्ष की आयु के गत सात वर्षों में देखा है , सहा है , भगवान करें वह कभी किसी को देखना , सहना न  पड़े | ``                                                                                                                     कुछ देर रुकने के बाद वह एक गहरी सांस लेकर आगे  बोली -`` अम्बुज बाबू ! मैं एक नर्तकी हूँ | मेरा वास्तविक नाम मीनाक्षी है | वैसे यहाँ सब लोग मुझे शबनम कहते  हैं | सारा नगर मेरी एक  मुस्कान देखने के लिए प्यासा रहता है | लेकिन मुझे पुरुष जाति के नाम से नफरत है | उसकी परछाईं तक से चिढ है | फिर आप ही बताइये गंगा के शीतल वक्ष स्थल के अतिरिक्त अब कौन सी जगह बची है मेरे लिए |``                                                                 अम्बुज कुछ नहीं बोला | बस चुप चाप बैठा पैरों से पानी उछालता रहा | मीनाक्षी ने ही फिर बोलना शुरू किया -`` अच्छा एक बात बताइये --- अगर आपकी कोई बहिन कभी भटक कर खो जाये और काफी दिन  बाद अचानक आपको मिले तो क्या आप अपने सम्मान के लिए उसे बिलकुल ठुकरा देंगे , उससे बोलेंगे तक नहीं | वह अगर आपके सामने आ जाये तो क्या आप उसे पहचानने से इनकार कर देंगे |``.                                                                                                                            अम्बुज अब भी चुप था | वह ही फिर बोली - ``आपने कुछ उत्तर नहीं दिया | वैसे उत्तर देने की कोई बात  भी नहीं है | आप भी तो पुरुष ही हैं न | आप लड़कियों की स्थिति को भला क्या समझेंगे | अम्बुज बाबू ! मैं भी कभी आपकी ही तरह एक बहुत सम्माननीय परिवार की लड़की थी | मेरे पापा एक उच्च अधिकारी थे | एक बार हम कुम्भ स्नान के लिए हरिद्वार गये | वहाँ मैं भीड़ में परिवार से अलग हो गई और कुछ गलत लोगों के हाथ पड़ गई | बस उन्होंने मुझे कुछ दिन ऐसे ही अपने पास रखा फिर एक नाचने वाली नर्तकी बना दिया  | अब बस सबकी इच्छा पूरा  करना ही मेरा जीवन है | हाई स्कूल पास होने पर भी अनपढ़ और सभ्य होते हुए भी असभ्य हूँ |``                                                                 `` जब आप हाई स्कूल पास हैं तो कहीं सर्विस क्यों नहीं कर लेतीं |``                       `` आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे नाचना मेरी अपनी दुर्बलता है | मुझे नौकरी देगा कौन ? क्या आप ही इंजीनियर हो जाने के बाद मुझे नौकरी पर रख लेंगे | सच आप मुझसे बड़े अवश्य हैं ; पर इस समाज से बिलकुल अपरिचित हैं |``                                                           अम्बुज ने कोई उत्तर नहीं दिया | उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे | उसे सहानुभूति तो अवश्य थी ; लेकिन अभी एक शिक्षार्थी होने के कारण कुछ भी करना उसकी शक्ति से बाहर था | पर तभी उसे ध्यान आया कि उसकी बड़ी दीदी जो इलाहाबाद में इन्टर कालिज की प्रधानाचार्य हैं , इस प्रकरण में उसकी सहायता कर सकती हैं | वह मीनाक्षी से बोला -`` क्या तुम इलाहबाद जा सकती हो ? वहाँ मेरी बड़ी दीदी हैं | वो वहाँ तुम्हें छात्रावास में प्रवेश भी दिला देंगी और तुम्हारी पढाई का प्रबन्ध भी कर देंगी | इस तरह तुम्हारी पढाई पूरी होने के साथ साथ , तुम्हारा मन भी बहुत कुछ स्थिर हो जायेगा |``                                                                                 `` इससे अच्छी बात  और क्या हो सकती है मेरे लिए |``                                     `` तो आज ही दोपहर को मैं दीदी से फोन पर बात  करता हूँ | तुम कल इसी समय मुझसे मिलने आ जाना | ठीक है |``                                                        सवेरा हो गया था | दोनों उठ कर तुरन्त वहाँ से चल दिये | अम्बुज यद्यपि होस्टिल जाना चाहता था ; लेकिन जब मार्ग में उसकी दृष्टि दूरभाष एक्सचेंज पर पड़ी तो वह उसी की ओर मुड़ गया | तुरन्त कॉल बुक कराई और बेंच पर बैठ कर प्रतीक्षा करने लगा | कुछ ही देर बाद उसकी अपनी बहिन से विस्तार से बात हो गई और वह ही प्रसन्न होकर होस्टिल लौट आया |                                        दुसरे दिन जब वह निश्चित समय पर गंगा की सीढ़ियों पर पहुँचा तो आश्चर्य चकित रह गया | मीनाक्षी वहाँ पहले से ही बैठी हुई थी | वह उसे देखते ही बोली -`` मैं तो समझती थी कि शायद अब आप कभी यहाँ नहीं आयेंगे ; लेकिन अब लग रहा है कि वास्तव में आपके मन में मेरे लिए काफी सहानुभूति है                                            अम्बुज ने उसकी बात  का कोई उत्तर नहीं दिया और बोला -`` कल तुम्हें इलाहबाद जाना है | मैं तुम्हें सुबह छ वाली गाडी पर स्टेशन पर ही मिल जाऊंगा | वहीं दीदी के लिए पत्र भी दे दूंगा और तुम्हारे खर्च के लिए कुछ रूपये भी |``                                                                    `` क्या आपने सब कुछ बता दिया है उन्हें                                                      .        `` नहीं , अभी तो ज्यादा कुछ नहीं बताया है | पर हाँ धीरे धीरे सब कुछ बता दूंगा | बस अभी तो इतना ही कहा  है कि तुम मेरे एक घनिष्ट मित्र की बहिन  हो |``                                                                    `` लेकिन अगर बीच में ही बात खुल गई तो !`` ऐसा कुछ नहीं होगा , तुम कुछ चिंता मत करो | वहाँ बस होस्टिल से कम से कम बाहर निकलना और कृपया   बस कोई ऐसा काम मत कर बैठना कि फिर तुम्हारी जगह मुझे आत्म हत्या करनी पड़े |                                                        `` तो आप मुझे इतना गिरा हुआ समझ रहे हैं | अगर aऐसी ही होती तो क्या कभी इस तरह आत्म हत्या करने की बात सोचती | क्या दुनियां में और लडकियाँ मेरी तरह चुप  चाप नारकीय जीवन व्यतीत नहीं कर रही हैं |``                                                                                           दूसरे दिन वह गाडी छूटने के समय से काफी पहले स्टेशन पहुँच गया | पहले मीनाक्षी को सब अपेक्षित सामग्री प्रदान की फिर संक्षेप में दीदी का रहन सहन , रुचियाँ , व् कुछ ख़ास आदतों के विषय में बतानें के बाद उसे गाडी में बिठलाकर जब होस्टिल लौटा तो बहुत ही प्रसन्न था | उसे हर पल बस यही लग रहा था कि आज  न जाने कितना बड़ा काम उसने किया  है | उसके जरा सा सहारा देने से अगर किसी की जिन्दगी बच जाये और वह दुर्गन्धित कीचड़ से निकल कर अपनी तरह स्वतंत्र जीवन व्यतीत कर सके तो इससे बड़े उपकार की और कौन सी बात हो सकती है |                                                                                                         पर जब इसके बाद एक सप्ताह तक उसे  दीदी का कोई पत्र नहीं मिला तो उसका कुछ कुछ  माथा ठनकने लगा | कहीं  कुछ गडबड तो नहीं है | कहीं मीनाक्षी ने वहाँ कुछ उलटा  सीधा तो नहीं कर दिया है | कहीं उससे  मीनाक्षी को पढने समझने में कोई भूल तो नहीं हो गई | ऐसे ही न जाने कितने प्रश्नों में उलझे उलझे उसका दिन तो जैसे तैसे कट गया पर रात को एक पल नींद नहीं आई | उसने इतने थोड़े से पलों के परिचय में ही मीनाक्षी पर इतना बड़ा विश्वास कैसे कर लिया | बिना कुछ जाने परखे उसे अपने ही घर में भेज दिया और वह भी दीदी से सफेद झूठ बोलकर कि वह उसके मित्र की बहिन है | अब अगर दो तीन दिन और इलाहबाद से पत्र नहीं आया तो वह फिर स्वयं दीदी से फोन पर अवश्य बात करेगा |                                                                              इस के तीन चार दिन बाद रैगिग से एक छात्र की अचानक किसी होस्टिल में मृत्यु हो जाने के कारण उपकुलपति ने १५ दिन के लिए विश्व विद्यालय में अवकाश घोषित कर दिया | aअम्बुज के मन में मीनाक्षी के विषय सब कुछ जानने की प्रबल इच्छा थी | इसलिए उसने  मेरठ न जाकर दीदी के पास इलाहबाद जाने का निर्णय किया | लेकिन  वह जब वहाँ पहुँचा तो सामने का द्रश्य देख कर चकित रह गया  | मीनाक्षी दीदी के दोनों बच्चों के साथ बैठी खाना खा रही थी | उनका छोटा बेटा उसकी गोद में बैठा था और बेटी बगल में | उसने जैसे ही दीदी को आवाज दी , वह तुरन्त सब काम छोड़ कर कमरे में आ गई | उसने पहले तो उनके बड़े आदर से पैर छुए फिर मीनाक्षी की ओर देख कर बोला -`` छोटी दीदी ! आप तो शुभ को गोदी में लिए बैठी हैं , अब मैं  आपके पैर कैसे स्पर्श करूं | ``                                                                   मीनाक्षी अम्बुज का यह अचानक प्रस्ताव सुनकर अपने में जैसे सिमट सी गई | पर जब तक वह कुछ कहतीं कि दीदी बोलीं - `` आते देर नहीं हुई कि उसे परेशान करना शुरू कर दिया | चल तू भी हाथ पैर धो कर इनके साथ ही खाना का ले | थक कर आया है | भूख लग रही होगी | इसके बाद वह भी जूही के बराबर खाना खाने चटाई पर बैठ गया | उसे इस समय जाने क्यों मीनाक्षी के पास बैठ कर भोजन करना बहुत अच्छा लग रहा था | मीनाक्षी भी कभी कभी तिरछी दृष्टि से उसकी तरफ देख लेती थी | जब दीदी रसोई में चली गई तो वह मीनाक्षी से बोला -`` तुम्हें यहाँ पहुचने में कोई असुविधा तो नहीं हुई |``                                                         `` नहीं , मैं तो आराम से पहुँच गई थी |``                                            `` कैसी लगी मेरी दीदी ?``                                                              `` सच बहुत अच्छी हैं | मैंने बहुत कहा , पर मुझे होस्टिल ही नहीं जाने दिया | बोलीं - देखो ! यह भी तुम्हारा ही घर है | कुछ दिन रह कर देख लो |  यहाँ रहना अच्छा लगे और तुम्हारी पढाई में कोई व्यवधान न आये  तो यहीं रहती रहो | वरना फिर होस्टिल चली जाना |  यहाँ रहोगी तो मुझे एक छोटी बहिन मिल जायेगी और तुम्हें घर का वातावरण | बस फिर उन्होंने  मुझे यहीं अपने पास रोक लिया | सच आपकी दीदी इतना प्यार देने वाली हो सकती हैं , मैं तो सोच भी नहीं सकती थी | पता नहीं इस जनम में मैं आपका व् दीदी का जरा सा भी ऋण चुका भी पाऊँगी कि नहीं |``                                              `` बस एक तरह से चुका सकती हो | वह एक अच्छी लड़की बनकर | ``                     ``तो क्या मैं अब आपको पहले से कुछ ठीक नहीं लग रही हूँ | ``                              `` नहीं , ऐसा तो नहीं है | पर हाँ एक बात  अवश्य है | क्या तुम्हें अपने घर की कभी याद नहीं आती | क्या तुम्हारा मन अपने भाई बहिन , मम्मी पापा से मिलने को बिलकुल  नहीं करता |``                   `` ऐसी कौन अभागिन लड़की होगी जिसे अपने घर की याद न आये | क्या भाई बहिनों का प्यार माता पिता की दुलार भरी बातें कभी भुलाई जा सकती हैं | पर अब जिन बातों की केवल यादें ही शेष रह गई हैं , उन्हें अकारण कुरेदने से क्या फायदा | `` कहते कहते उसकी आँखे भर आई | वह फिर अपने आंसुओं को दुपट्टे से सुखाते हुए बोली -`` आप ही बताइये -- क्या पापा मेरी सारी कहानी सुनकर मुझे स्वीकार कर लेंगे | क्या मेरे परिवार के अन्य लोग मुझे पहले जैसा प्यार सम्मान दे पाएंगे | क्या मम्मी मुझे अपने वक्ष से लगाकर अपने साथ सुलाने को तैयार हो जायेंगी                                            `` अच्छा छोडो अब इस विषय को |`` अम्बुज तुरन्त बोला -`` मैंने व्यर्थ में ही तुम्हारा मन दुखा दिया | बस अब खूब मन से पढो | दीदी तुम्हारे पास हैं ही | जब भी जिस चीज की तुम्हें आवश्यकता हो दीदी को निसंकोच  बता देना |``                                                         छुट्टियाँ समाप्त होने के बाद जब अम्बुज बनारस लौटा तो कमरे में विभावरी का पत्र पड़ा था | उसने तुरन्त उसे उठाया और फाड़ कर पढना  प्रारम्भ किया ---                                                             `` प्रिय अम्बुज                                                              आज तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा है | सच तुम बहुत निष्ठुर हो | पता है कितने दिन से तुमने एक भी पत्र नहीं लिखा | जब मुझसे सीमायें बनाकर दूर रहना चाहिए था , मिलने जुलने में संकोच करना चहिये था तो कोई न कोई बहाना खोज कर घर आने व् मिलने का रास्ता ढूढ़ लेते थे |  पर अब तो जब शादी  तक निश्चित हो गई है तो तुम्हारे पास पत्र तक लिखने को समय नहीं है | सच जब कालिज के दिन याद आते हैं तो तुम्हारी कमी बहुत खलती है | पर पता नहीं तुम्हें भी कभी जरा सी मेरी याद आती है या नहीं |``                                                                  ``कल तुम्हारी ( मेरी भी ) मम्मी मुझसे मिलने आई थीं | कह रहीं थीं कि कई दिन से तुझे देखने को बहुत मन कर रहा था | अब बस गर्मियों की छुट्टियों में तुझे अपने घर ले जाऊँगी | सच अम्बुज वह कौन सा शुभ दिन होगा जब तुम हमारे घर बारात लेकर आओगे और मैं तुम्हारे गले में जयमाला डालूँगी | हाँ , मैं  एक बात  तो तुम्हें बताना भूल ही गई | पापा का  स्थानान्तरण हो गया है | हम बस चार पांच दिन में ही बरेली चले जायेंगे | अब तुम वहीं के पते पर पत्र लिखना | लिखोगे न | चाहे दो पंक्तियाँ ही लिखो | पर देखो लिखना अवश्य | पत्र की प्रतीक्षा में -                                                                                           तुम्हारी ही - विभावरी |                         पत्र पढ़ कर अम्बुज कुछ क्षण के लिए जैसे  स्वप्न लोक में खो गया | उसका सबसे मधुर सपना अब पूर्ण होने में बस थोड़े से दिन ही शेष रह गये थे | उस दिन उसका न तो पढने में कुछ मन लगा , न किसी अन्य कार्य में | बस ऐसे ही सोचता , करवटें बदलता सो गया                                    एक वर्ष कब कैसे बीत गया , उसे कुछ पता ही नहीं चला | परीक्षाएं समाप्त होने के बाद जब वह मेरठ पहुँचा तो उसकी दीदी वहाँ पहले से ही उपस्थित थी | उनके गर्मियों में घर आने की बात उसके कुछ समझ में नहीं आई | क्योंकि गर्मियों में तो वह सदैव ही सपरिवार पहाड़ों पर जाया करती थीं | दीदी ने जब उसे देखा तो तुरन्त हंसते हुए बोलीं -`` पता नहीं इसकी भी न जाने कितनी बड़ी उम्र है | अभी हम तेरी ही तो बातें कर रहे थे | कल तुझे मेरे साथ मसूरी चलना है | तेरे जीजा  जी तो व्यस्तता के कारण इस बार  कहीं नहीं जा पायेंगे                                       `` क्या आप यहाँ अकेली ही आई हैं , मीनाक्षी व् बच्चे नहीं आये |``                                   ``हाँ , वो सब इलाहबाद में ही हैं | मीनाक्षी के पास | उसी को तो सारा घर सोंप कर आई हूँ | दरअसल बच्चों के अभी चार पांच दिन स्कूल और खुलने वाले थे  | तो मीनाक्षी बोली - दीदी आप इस समय अकेली  मेरठ चली जाइये | शुभ और जूहीकी अब लम्बी छुट्टियाँ होने से उन्हें काफी गृह कार्य भी मिलेगा | इसलिए उनका इन दिनों स्कूल जाना बहुत आवश्यक है | मैं बाद में इन्हें लेकर आपके पास  देहरादून पहुँच जाऊंगी | आप यहाँ की बिलकुल चिंता  मत कीजिये | सच बड़ी ही अच्छी लड़की है | सारे कालिज में अलग दिखती है --- पढाई में भी और व्यवहार में भी | मुझे उसकी लगन देख कर पूरा विश्वास है कि वह इस साल पूरे कालिज को टॉप करेगी                                                          अम्बुज की इच्छा इस समय यद्यपि एक बार बरेली जाकर विभावरी से मिलने की थी ; लेकिन जब दीदी स्वम् उसे लेने आई थीं तो वह उनकी बात टाल नहीं सका | फिर कुछ दिन बाद उसका विवाह होने ही वाला था | इसलिए उसने दीदी के प्रस्ताव के सम्मुख विभावरी से मिलने के लालच को अधिक महत्व देना उचित नहीं समझा | पर कहीं वह इसका कुछ बुरा न मान जाये  , उसने अपने मसूरी जाने का कारण उसे विस्तार पूर्वक बता दिया                                   अगले दिन जब वह दीदी को लेकर देहरादून पहुँचा तो मीनाक्षी तब तक  इलाहबाद से नहीं आई थी | उसकी गाडी एक घंटा लेट थी | इसलिए ये लोग तीन बजे मसूरी के लिए चल पाए |                                                                                दीदी की अवस्था अभी यद्यपि ३५ के लगभग थी पर वे अम्बुज व् मीनाक्षी के बराबर न तो उत्साह्शील थी और न अधिक धूमने के लिए उत्सुक | बस सुबह दो तीन घंटे घूमने के बाद उनमें इतना साहस नहीं रहता था कि कहीं और जा सकें | इसलिए शाम को बस अम्बुज और मीनाक्षी ही घूमने के लिए रह जाते थे | एक दिन माल रोड से लौटते समय अम्बुज ने वैसे ही मीनाक्षी से पूछा -``अब तो तुम्हारी हर बात ठीक हो गई है | कॉलेज में तुम्हें खूब सबका अपनापन सम्मान मिल रहा है | दीदी , जीजा जी का भरपूर प्यार तुम्हारे पास है | कुछ दिन में तुम इंटरमीडिएट की परीक्षा भी पास कर लोगी | अगर तुम आगे न पढना चाहो और ठीक समझो तो मैं दीदी से तुम्हारी शादी के लिए कुछ प्रयत्न करने की बात करूं |``                                                        अम्बुज की बात सुनकर मीनाक्षी पहले तो कुछ देर चुप रही फिर धीरे से बोली -`` क्या दीदी मेरे बारे में कुछ कह रही थीं | सच अम्बुज अगर वह मुझे थोड़े दिन और सहारा दे दें तो में बी ए कर के अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनना चाहती थी | वैसे तुम्ही बताओ , मुझ जैसी लड़की से शादी कौन करेगा |  मेरे पास तो अब किसी को हर पल मानसिक तनाव देने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है |"                                                                                               `` क्यों , तुम्हारे पास किस बात  की कमी है | क्या तुम पढ़ी लिखी नहीं हो | सुन्दर नहीं हो | घर ग्रहस्थी संभालने की तुम में योग्यता नहीं है | किसी को एक लड़की से और क्या चाहिए | "                              `` अम्बुज ! तुम लड़कियों की मजबूरियों को नहीं समझ सकते | समाज में उसकी नाजुक स्थिति का अनुमान नहीं लगा सकते | पुरुष तो कुछ भी करने व् हजार कमियां होने पर भी हमेशा महान रहता है | पर लड़की अनजाने में भी एक छोटी सी भूल हो जाने पर हमेशा हमेशा के लिए कुलटा , घ्रणित , अपवित्र हो जाती है | "                                                     `` पर अब तो हर बात समाप्त हो गई है | किसी को पता ही क्या चलेगा |"                       `` हाँ, वह तो ठीक है | पर अगर विवाह के बाद बात खुल गई तो | क्या तुम  अनुमान लगा सकते हो  तब मेरा क्या हाल होगा | क्या मैं तब जीवित भी छोड़ डी जाऊंगी कि नहीं |``                          अब अम्बुज कुछ नहीं बोला | होटल पास आ गया था | दोनों कमरे में प्रवेश करने तक बिलकुल मौन रहे | अम्बुज के मन में एक अजीब सी घुटन बस गई थी | मीनाक्षी कितनी अच्छी है | पर उसकी शादी नहीं हो सकती | वह कभी सम्मान पूर्वक पारिवारिक सुख प्राप्त  नहीं कर सकती | वह इस समस्या में उलझा चुप चाप पलंग पर लेट गया | कुछ देर बाद जब मीनाक्षी शुभ व् जूही को लेकर बाहर लॉन में चली गई तो वह दीदी के पास आ गया और उनसे बोला -`` दीदी अगर कोई लड़की कभी अज्ञानवश कोई भूल कर बैठे या कुछ शक्ति शाली लोग उसकी दुर्बलता का लाभ उठा कर उसे कुछ दिन घ्रणित कार्य करने को बाध्य कर दें तो क्या वह कभी सम्मानित जीवन व्यतीत नहीं कर सकती | क्या उसे कभी समाज में सम्मान नहीं मिल सकता | "                                          `` क्यों नहीं मिल सकता | `` दीदी ने पूरी द्रढ़ता के साथ कहा -`` लेकिन कोई पुरुष उसे अपनाने का साहस करे , तभी न | ``                                                            `` तो क्यों नहीं अपनाता पुरुष | जब वह ही उसे गिराता है , हर कार्य करने के लिए बाध्य करता है , तो उसे स्वीकार क्यों नहीं करता |``                                               .       दीदी ने एक बार अम्बुज की ओर बड़े ध्यान से देखा , फिर बोली -`` आज कैसे यह प्रश्न तेरे दिमाग में आ गया | क्या कोई कहानी पढ़ी है ?``                                                   `` कहानी नहीं दीदी , एक बड़ा  उपन्यास पढ़ रहा हूँ |  मीनाक्षी के जीवन का उपन्यास | वह कहती है , उससे कभी कोई शादी नहीं करेगा |``                                                 `` क्यों ?`` दीदी ने बड़े आश्चर्य से पूछा |``                                                       अम्बुज ने अपनी गर्दन नीचे झुकाली और फिर बहुत पतले स्वर में धीरे से बोला -`` दीदी मैंने तुमसे बहुत बड़ा झूठ बोला है | मीनाक्षी मेरे किसी मित्र की बहिन नहीं है | वह एक अपहृत की हुई लड़की है | इसके पापा एक बड़े अधिकारी है | एक बार ये लोग हरिद्वार कुम्भ नहाने गए थे | वहीं कुछ लोगों ने इसका अपहरण कर लिया | बस फिर ये नर्तकी बन गई | एक दिन जब मैं गंगा किनारे पहुंचा तो यह आत्म हत्या करने जा रही थी | यह मुझसे देखा नहीं गया और मैंने इसे तुम्हारे पास यहाँ भेज दिया |``                                                                             `` तूने मुझे पहले क्यों नहीं बताया यह सब ? इतने गंदे वातावरण में रह कर भी ये अब भी कितनी समझदार है | किसी से कभी उलटा सीधा नहीं बोलती , मेरी किसी बात का कभी बुरा नहीं मानती | आज कल की लड़कियों की तरह न इसे कोई शौक है , न कोई इच्छा | घर के सब काम भी इतने करीने से करती है कि तुझे क्या बताऊँ | पूरे कॉलेज में भी कोई ऐसा  नहीं है जो इसकी प्रशंसा  न करता हो | लेकिन अब इसके माता पिता कहां हैं ?``                                                        `` यह वो नहीं बताती | कहती है कि व्यर्थ में उनकी बदनामी होगी और कहीं पापा भी मेरी तरह समाज की दृष्टि में न गिर जाएँ | मैं तो एक उपेक्षित जीवन जी ही रही हूँ | कम से कम पापा तो ठीक ठाक रहें | वह तो  समाज की दृष्टि में न गिरें |``                                                            `` तो ठीक है | अब वह जब तक चाहे मेरे ही पास रहेगी | जहाँ  तक उसका मन करे ,वो  आगे पढ़े | मैं  कभी उसे किसी बात के लिए मना नहीं करूंगी | वैसे अम्बुज सच तो यह है कि जब हम जैसे लोग ही ऐसी लड़कियों को सहारा नहीं देंगे तो और कौन देगा | तुझे पता है कि मैं अम्मां से तेरे लिए मीनाक्षी के बारे में ही तो बात करने गई थी | अम्मां ने तो स्वीकृति दे दी है | अब तू बता , तेरा मीनाक्षी के विषय में क्या विचार है ?``                                                                     दीदी की बात सुन कर अम्बुज के पैरों के नीचे से जैसे जमीन निकल गई | उसे मीनाक्षी से सहानुभूति तो थी और वह उसे प्यार भी करता था ; पर उसके साथ विवाह का प्रश्न भी सामने आ सकता है , इसकी उसने कल्पना नहीं की थी | वह एक पल को तो हत प्रभ सा चुप चाप बैठा रहा फिर अपने को कुछ साधते हुए बोला -`` पर दीदी , फिर विभावरी का क्या होगा ? क्या उसके घर वाले इसका बहुत बुरा नहीं मानेंगे ?``                                        `` विभावरी अमीर है |`` दीदी ने तुरन्त कहा -`` उसकी कहीं भी किसी अच्छे घर में शादी हो जायेगी | फिर वह मुझे अधिक पसंद भी नहीं है | अमीर घर की लड़की पर कुछ विश्वास सा नहीं होता | बहुत लाढ प्यार में पली इकलौती बेटी है | पता नहीं हमारे घर में घुल मिल पायेगी भी कि नहीं | बहू तो हमेशा घरेलू सी और अपने बराबर के स्तर की ही होनी चाहिए | रही घर वालों की बात तो अभी कोई रस्म थोड़े ही हुई है |``                                                                            तभी बच्चों के साथ मीनाक्षी के कमरे में आ जाने से दोनों को विषय बदल देना पड़ा | दीदी मीनाक्षी से बोलीं -`` आज मेरी तबियत ठीक नहीं है | इसलिए मेनेजर से कहना कि वह बस दो थाली ही खाना भेजे |`` मीनाक्षी कुछ नहीं बोली | चुप चाप कमरे से बाहर चली गई                    खाना खाने के बाद जब अम्बुज और मीनाक्षी होटल के लॉन में आये तो काफी अँधेरा हो गया था | लेकिन ठंडी ठंडी हवा मन को बहुत अच्छी लग रही थी | दोनों एक पत्थर पर आकर बैठ गये | कुछ देर चुप रहने के बाद अम्बुज मीनाक्षी के मन में उसके प्रति कोमल भावना को टटोलने के विचार से उससे  बोला -`` मीना ! अगर तुम्हें कुछ दिन अकेले मेरे साथ रहना पड़े  तो तुम्हें कैसा लगेगा  ?``                                                                              `` मुझे कैसा लगेगा ?`` मीना ने बड़े आश्चर्य के साथ पूछा -`` यह बात  क्यों पूछ रहे हो  ? तुमको तो मैंने बहुत पास से देखा है | एक वर्ष से हर पल तुम्हारी आत्मा में जो भगवान का स्वरूप अनुभव कर रही हूँ वह कुछ शब्दों में यहाँ बैठ कर अभिव्यक्त नहीं कर सकती |``                               `` बात यह है कि अब कुछ ही दिनों में मेरी सर्विस लग जायेगी और मुझे सिंगापुर जाना पड़ेगा | तब मुझे एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होगी जो कुछ दिन मेरे साथ रह कर वहाँ मेरे खाने  पीने की व्यवस्था कर सके और मेरे दैनिक उपयोग का सामन बाजार से खरीदने व् उसे  उचित स्थान पर लगाने में मेरी सहायता कर सके |``                                             `` पर क्या वहाँ मेरे तुम्हारे साथ अकेले रहने से तुम्हारी बदनामी नहीं होगी | जब कोई मेरे बारे में तुमसे पूछेगा कि मैं कौन हूँ तो तुम क्या उत्तर दोगे | फिर अब कुछ दिन बाद ही तो तुम्हारी शादी होने वाली है |``                                                                                   `` तो इसका मतलब तुम मेरी कोई सहायता नहीं करोगी |``                                              `` नहीं अम्बुज तुम मेरी बात का गलत अर्थ लगा रहे हो | तुम्हारे किसी काम के लिए तो मुझे अगर अपनी जान भी देनी पड़े तो मैं वह भी खुशी खुशी दे दूंगी | यह तुम्हारा काम तो मेरे लिए कुछ भी नहीं है |``                                                                                 `` तो  फिर चलो  ऐसा करते हैं जिससे तुम्हारे मन का भी सब डर  निकल जाये और मेरे काम में भी कोई व्यवधान न आये  -- दोनों शादी कर लेते हैं | बोलो मुझसे शादी करोगी ?``                                `` अम्बुज प्लीज , मुझसे तुम कोई कितना भी कडवा मजाक करलो , पर ये शादी वाला मजाक मत करो | मैं बहुत मुश्किल से अपनी टुकड़े टुकड़े बिखरी जिन्दगी को दीदी के प्यार की छाया में संग्रह कर पाई हूँ | मेरी आँखें अब सपने नहीं देखतीं | मेरा मन अब किसी बड़ी खुशी के बारे में नहीं सोचता | वह तो बस जीवन की अंधेरी संकीर्ण गलियों में थोड़ी सी शांति और थोड़ा सा चैन खोजता  हैं |``                                                                       `` अरे , तुम तो जाने क्या क्या सोचने लगीं | अभी कुछ देर पहले तो तुम मेरी आत्मा में भगवान की प्रतिछाया देख रहीं थीं | अब यह क्या हुआ | सच मैं तुमसे  जो कुछ कह रहा हूँ , वह मेरा ही नहीं , दीदी और माँ का भी  निर्णय है | वो अब मेरी शादी सिर्फ तुमसे यानी किसी मीनाक्षी नाम की प्यारी सी , सीधी सी जानी पहचानी लड़की से करना चाहती हैं |``                                          अम्बुज की बात सुनकर मीनाक्षी के मुरझाये गालों के गुलाब एक क्षण में पूरी तरह लाल हो गए | उसने अपना सर अम्बुज के सीने से लगा दिया | और धीरे से फुसफुसाई - अम्बुज | कुछ देर दोनों ऐसे ही बैठे रहे | फिर मीनाक्षी ने धीरे से अपना सर उठा कर उससे  कहा _`` क्या तुमने दीदी को सब कुछ बता दिया है |``                                                                      ``हाँ , उन्हें सब पता है |`                                                                  अब उसके मुँह से बस `सच ` निकला और वह अम्बुज के पहले से और अधिक  करीब हो गई |
        इसके एक महीने बाद बस जैसे ही सिंगापूर से अम्बुज के पास नियुक्ति पत्र आया दोनों का बहुत साधारण रूप से विवाह सम्पन्न कर दिया  गया | दोनों बहत प्रसन्न थे | पर `शायद विभावरी इस आघात को सहन नहीं कर सकी | उसके  पिता जी ने कुछ दिन बाद ही अम्बुज पर बेटी को धोका देने व् हर्जाने का प्रकरण न्यायालय में दायर कर उसे एक बड़ी उलझन में डाल दिया | विभावरी से विवाह न करने की बात इतना गम्भीर रूप धारण कर लेगी उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था | पहली ही तिथि पर विभावरी के पिता जी ने वो सभी पत्र  न्यायालय में प्रस्तुत कर दिये  जो उसने विभावरी को लिखे थे और जिनमें उसने केवल भविष्य के सपनों का ही नहीं वरन उन बातों का भी उल्लेख किया था जो प्रायः घर में उसके विवाह के विषय में होती थीं | उन्होंने यह भी कहा कि वे अब तक हजारों रूपये लडके वालों को विभिन्न अवसरों पर दे चुके हैं जो शादी तोड़ने के बाद भी अभी तक उन्होंने  नहीं लौटाए हैं |  
  
सिंगापूर नई जगह होने के कारण अम्बुज प्रति दिन किसी न किसी अप्रत्याशित समस्या का तो सामना कर ही रहा था , अब लगभग हर माह मुकदमे की तिथि पर बरेली जाने से उसका अपने विवाह का समस्त उत्साह ही नहीं , शरीर भी शिथिल पड़ गया था | पर मीनाक्षी के सामने वह सदैव ही प्रसन्न रहने का प्रयास करता था और उसे कभी यह प्रगट नहीं होने देता था कि वह इस समय बहुत बड़े संकट से गुजर रहा है | क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसे विभावरी के विषय में कुछ भी पता चले | बस वह जब भी बरेली जाता तो उससे यही कह देता कि वह किसी ऑफिस के काम से बरेली जा रहा है | बस दो तीन दिन में लौट आएगा |                                            इस बार जब अम्बुज बरेली आया तो तिथि एक सप्ताह बाद की ही लग गई | अतः वह सिंगापुर न जा कर वहीं एक होटल में ठहर गया | दूसरे दिन जब वह  अपने कमरे के बाहर बालकनी में खड़ा था तो उसे सामने से विभावरी आती हुई दिखाई दी  | वह कमरे के अंदर आ गया | कुछ ही देर बाद वह उसके दरवाजे पर खड़ी थी | वह धीरे से उससे बोला ---`` आओ , विभावरी |`` वह अंदर आकर उसके पलंग पर बैठ गई और  कुछ देर चुप रहने के बाद अम्बुज से बोली ---`` क्या कहीं जा रहे हो ?``         `` नहीं तो | क्या कोई विशेष बात है |``                                                `` अब मेरे पास विशेष हो ही क्या सकता है | मैं तो बस यह पूछना चाहती थी कि कम से कम तुम मेरा अपराध तो मुझे बता देते | आखिर वह कौन सी बात  थी जिसकी इतनी बड़ी सजा तुमने मुझे दी है ?`` 
          `` सच हर घटना चक्र मुझे कैसे असहाय और निर्णय बदलने के लिए  मानसिक रूप से बाध्य करता गया , तुम सोच नहीं सकतीं | जब भी रात को सोता तो रोज  मानवता मेरे सिरहाने आकर बैठ जाती और मेरा माथा सहलाकर बड़े प्यार से  मुझसे कहती ---देखो ! यह सच है कि प्यार की कोमल भावनाएँ बहुत सरस होती हैं ,मन को  जीने की हर क्षण नई  प्रेरणा  देती है ,पर वो फिर भी परोपकार से बड़ी नहीं होती | प्यार जीवन के लिए बहुत आवश्यक तो अवश्य  है ; पर किसी रोते सिसकते व्यक्ति के आंसू पोंछने से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है |``     
    
         `` तो तुमने `` विभावरी  उसकी बात पूरी होने से पहले ही उसे बीच में टोकते हुए बोली ---`` एक अनजान लड़की के आंसू पोंछने के लिए मेरा जीवन आंसुओं से भरने का निर्णय किया | वाह ! कितने महान हो तुम |``                                                               विभावरी का आक्रामक रुख देख कर जब अम्बुज ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया तो फिर वह ही फिर उससे बोली ---`` तुमने मुझे पत्र क्यों नहीं लिखा ?``                                                   `` बस इसलिए कि तुम्हारा दिल टूट जायेगा, तुम मुझसे प्रश्न पर प्रश्न करोगी और मुझसे हर बात का उत्तर चाहोगी |`` विभावरी चुप हो गई | अम्बुज ने ही फिर उससे पूछा ---``तुम्हें यह कैसे पता चला कि मैं यहाँ ठहरा हुआ हूँ ?``                                     .                            `` अभी अभी जब में बाजार से लौट रही थी तो तुम्हें बालकनी में खड़े हुए देखा था | वैसे कल पापा भी बता रहे थे  कि तुम एक सप्ताह इस होटल में ठहरोगे | तो मैंने सोचा कि तुमसे कुछ बातें ही कर लूं | शायद कुछ मन हल्का हो जाये |``                                            `` सुना है अदालत में तुम भी गवाही दोगी |``                                                   `` क्या करूं फिर ? तुमसे ही आदर्श वादिता सीखी थी और अब तुमसे ही निर्लज्जता सीख रही हूँ  | तुम एक भली लड़की को धोका दे सकते हो ,सौन्दर्य के कारण अपने प्यार को ठुकरा कर एक बाजारू नर्तकी से शादी कर सकते हो और मैं अपने सम्मान को बचाने के लिए गवाही तक नहीं दे सकती | अम्बुज तुम इतने  अजीब व् ह्रदय  हीन हो मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकती थी |``                    कहते कहते विभावरी का गला भर आया | उसकी आवाज रुंध गई | आँखों से तप तप आंसू जमीन पर गिने लगे | इसके बाद उससे एक शब्द नहीं बोला गया और अम्बुज के बिस्तर पर तकिये का सहारा लेकर बुरी तरह सिसकने लगी |अम्बुज कुछ देर तो स्तब्ध सा उसे खड़ा खड़ा देखता रहा फिर उसकी बांह पकड़ कर उसे उठाते हुए बोला ---`` चलो मुँह धोलो | अब बीती बाँतों से मन  खराब करने से क्या फायदा |``                                                                              विभावरी ने एक साथ उसका हाथ झिडक दिया और बोली ---`` क्या तुमने मुझे भी कोई नर्तकी समझ लिया है | छूने से पहले कम से कम यह तो सोचा होता कि तुम किसे छू रहे हो , तुम्हारे ये हाथ कितने पवित्र हैं |``                                                                अम्बुज कुछ नहीं बोला | वह नहीं चाहता था कि बात  कोई भयंकर रूप धारण  करे | वह चुप चाप उठा और चाय का आर्डर देने होटल के केबिन की ओर चला गया | लेकिन जब वापस आया तो विभावरी घर चली गई थी |                                                                   अम्बुज परेशान तो पहले से ही था | अब विभावरी की स्थिति देख कर उसका मन और अधिक विचलित हो गया | रात को उसे एक पल नींद नहीं आई | वह जब सवेरे सोकर उठा तो उसे तेज बुखार था |                                                                                              उसके बीमार होने की सूचना जैसे ही उसकी माँ व् मीनाक्षी को मिली , दोनों तुरन्त बरेली पहुँच गई | दो दिन उसकी स्थिति में कोई अन्तर नहीं आया | तीसरे दिन तो एक बार को ऐसा लगा जैसे वह अचेतावस्था में पहुच गया है | न कुछ आँखे खोल रहा था न कुछ बात  कर  रहा था | बस कभी कभी हल्के से होठ फडकने से ऐसा लगता था कि वह कुछ कहना तो चाह रहा है पर कह नहीं पा रहा है | मीनाक्षी उसकी यह स्थिति देख कर बुरी तरह घबरा गई | जब उसे कुछ समझ में नहीं आया तो वह  तुरन्त रिक्शा लेकर  डाक्टर साहब की डिस्पेंसरी पर पहुंची गई | वहाँ काफी भीड़ थी | पर वह सीधी उनके कमरे में जाकर उनसे बोली ---`` सर , मेरे पति की तबियत बहुत खराब है | प्लीज एक बार मेरे साथ चल कर उन्हें देख लीजिये | वह न कुछ बोल रहे हैं , न कुछ सुन रहे हैं | होठों से कुछ कहना तो चाह रहे हैं पर कह नहीं पा रहे हैं |``                                           बुजुर्ग डॉक्टर साहब उसकी घबराहट व् आँखों में उमड़ते आंसू देख कर उसके सर पर हाथ रख कर बोले --`` बेटी ! तुम  बिलकुल चिंता मत करो | तेज बुखार में कभी कभी ऐसा हो जाता है | वैसे मैं सुबह ही तो उन्हें देख कर आया हूँ | बेटी ! मेरी गाडी जरा पेट्रोल लेने गई है | बस जैसे ही ड्राईवर उसे लेकर आ जाएगा , मैं तुरन्त तुम्हारे साथ चल दूंगा |``                                             मीनाक्षी डॉक्टर साहब के पास ही एक बेंच पर  मरीजों को थोड़ा सा खिसका कर बैठ गई | पर थोड़ी देर बाद उसे लगा जैसे सामने बैठा एक स्थूल शरीर वाला व्यक्ति उसे बार बार बड़े ध्यान से देख रहा है | जब उसे देखते देखते काफी देर हो गई तो उसने भी फिर उसे एक बार बड़े घूर कर देखा | पर बस एक पल ही उसे ध्यान से देखने के बाद वह जैसे उसी में खो गई | कुछ देर में ही उसके चेहरे का रंग बदल गया और उसके होठ बड़े धीरे से फुसफुसाए --- पापा | एक पल बाद ही दोनों एक दूसरे के पास आ गये | मीनाक्षी उसके सीने से जोरों से चिपट गई | एक पल में उसकी सारी घुटन सब सीमायें तोड़ कर आंसुओं व् सिसकियों में ढलकर बाहर आ गई | पापा का भी बुरी तरह मन भर आया था | वह बहुत कोशिश करने पर भी अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे | काफी देर बाद वह बड़ी मुश्किल से उसकी कमर सहलाकर सर चूमते हुए बोले ---`` मीना ! तू कहाँ गम हो गई थी |`` डॉक्टर साहब बड़े आश्चर्य से दोनों की ओर देखते हुए बोले ---`` क्या यह आपकी बेटी है जज साहब |``            `` हाँ , डॉक्टर , ये मेरी बड़ी बेटी है | आज मुझे ये पूरे सात साल बाद मिली है | पता नहीं यह अब तक कहाँ कैसे रही मैं नहीं जानता | कृपया अब आप देर मत कीजिये | मेरी गाडी बाहर खड़ी है | पता नहीं मरीज की हालत जाने कैसी हो | ``                                                         जब वह सब  होटल पहुंचे तो अम्बुज चुप चाप बिस्तर पर लेटा  था और माँ उसका माथा सहला रहीं थीं | डॉक्टर साहब ने उसका सूक्ष्मता से निरीक्षण करने के बाद कहा ---`` चिता की कोई बात नहीं है | मैं एक इंजेक्शन और दिये देता हूँ | फिर भी अगर कोई ख़ास बात हो तो मुझे इन्फॉर्म कर दीजिये | वैसे दोपहर बाद मैं एक बार और इन्हें देखने खुद आ जाऊँगा |``                                    कुछ देर बाद जब मीनाक्षी डॉक्टर साहब को सी ऑफ कर कमरे में वापस आई तो अपने पापा का माँ से परिचय कराते हुए बोली ---`` माँ , ये मेरे पापा हैं | अचानक ही डॉक्टर साहब की डिस्पेंसरी पर मिल गये थे | मेरी एक छोटी बहिन  भी है | मैंने उसे भी यहीं बुलवा लिया है | बस अभी ड्राईवर लेकर आता होगा |``                                                                      ``तो विभावरी तुम्हारी छोटी बहिन है |`` अम्बुज ने धीरे से तकिये का सहारा लेते हुए कहा |     `` हाँ ! क्या तुम उसे जानते हो ?``                                                                `` हम साथ साथ एक ही कॉलेज में पढ़ते थे | आज उसी के  प्यार के कारण मैं सिंगापूर की बजाय यहाँ होटल के एक छोटे से कमरे में बुखार से लड़ रहा हूँ |``                                                       `` अम्बुज बेटा ! `` जज साहब ने अपनी कुर्सी उसके पलंग के बिलकुल पास खिसकाते हुए कहा ---`` मैं  तुमसे किन शब्दों में माफी मांगूं , कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ | तुम्हारा दिल कितना बड़ा है , तुम मुझसे बहुत छोटे होते हुए भी आज मेरी दृष्टि में कितने ऊंचे उठ गये हों , मैं तुम्हें बता नहीं सकता | जिस लड़की  के लिए मैंने अनेक अपशब्द तुम्हारे लिए वकीलों से कहलवाए ,तुम पर व्यर्थ का झूठा मुकदमा दायर कराया , वह मेरी ही सगी बेटी है , इसकी मैंने कल्पना तक नहीं की थी | लेकिन एक तुम हो जो सब कुछ जानकर भी तुमने एक समाज से बहिष्कृत लड़की को केवल मार्ग दर्शन और सहारा ही नहीं दिया , उसे हमेशा के लिए अपना भी लिया |``                तभी द्वार पर कार का हॉर्न बजा और विभावरी भागती हुई कमरे के अंदर आ गई | पर सामने अम्बुज और अन्य सब को देख कर एक साथ चोंक पड़ी | मीनाक्षी ने उसे तुरन्त ह्रदय से लगा लिया और बोली ---`` तू इतनी बड़ी हो गई | मैं तो सोचती थी कि अभी वैसी ही छोटी सी होगी |``               बोली ही नहीं | बस उसके मुख से  टूटे शब्दों में यही निकला ---`` दीदी ! क्या तुम्हारी ही अम्बुज से शादी हुई है ? क्या तुम ही वह नर्तकी हो |``                                                   अम्बुज दोनों को अपलक देख रहा था | उसके सूखे मुरझाये होठों पर न मुस्कान थी , न उदासी |

                            समाप्त

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

विष भरा अमृत ( कहानी )

                                                          विष भरा अमृत    ( कहानी )  --- आलोक सिन्हा    .         पापा ने मेरा नाम अनुपमा रख...